Book Title: Arshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharati Jain Prakashan Samiti
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________________ ॐ प्रादीश्वराय नमः नमो लोए सव्वसाहूणं। आर्ष भीयचरित तथा विजयोल्लास दोनों महाकाव्य एवं उनके सम्बन्ध में संक्षिप्त कथनीय वि० सं० 2006 तथा ई० स० 1653 के' वर्ष में मेरी मातृभूमिजन्मभूमि और न्यायविशारद न्यायाचार्य महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी महाराजश्री की स्वर्गवास भूमि 'डभोई' [दर्भावती] नगरी में, पू० स्व० उ० श्रीयशोविजयजी की नवीन भव्य देहरी तथा गुरुमूर्ति की प्रतिष्ठा के प्रसंग पर, साथ ही साथ महोपाध्यायजी के जीवन और कवन से जैन-अजैन विद्वान् एवं प्रजा को परिचित कराने के लिए 'श्रीयशोविजय सारस्वत सत्र' नाम से एक सत्रोत्सव भी आयोजित करने का निर्णय किया। पूज्यपाद चार आचार्यों की अध्यक्षता में प्रातः और मध्याह्न में सार्वजनिक सभाएँ होती थीं, पूज्यपाद गुरुदेवों के वक्तव्यों के साथ ही देश के विविध भागों से आये हुए अनेक विद्वानों ने पूज्य उपाध्यायजी के 'जीवन तथा कवन' विषय पर अध्ययनपूर्ण मननीय प्रकाश डाला था / सभा में प्रायः पाँच हजार जनता की उपस्थिति थी। यह एक अभूतपूर्व प्रसंग था। मुख्यरूप से गुजरात की जनता को गुजरात के एक महान धर्मसपूत को परिचित कराने के लिये किया गया यह प्रयास इस सत्र के हात, तथा शासकीय तन्त्र एवं उसके प्रचार साधनों के सुन्दर सहयोग से, साथ ही समाचार पत्रों के उत्साह से सफलता को प्राप्त हुआ था और मेरा उद्देश्य सफल होने से मुझे उसका अवर्णनीय एवं अपार आनन्द हुआ था। 1. यह उत्सवं फाल्गुन कृष्णा (गुजराती) द्वितीया से फाल्गुन कृष्णा अष्टमी तक हुआ था / इसी में सारस्वत-सत्र सप्तमी और अष्टमी दि० 7-3-53 एवं 8-3-53 को दो दिन आयोजित था।