Book Title: Arshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharati Jain Prakashan Samiti
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________________ [तृतीय कृति] सिद्धसहस्रनाम-कोश सहस्रनाम : : परम्परा और प्रकार-- संस्कृत स्तुति-साहित्य में 'सहस्रनाम'-स्तोत्रों की परम्परा भी अति प्राचीन है। उपासना के क्षेत्र में जिस प्रकार मन्त्र, यन्त्र, तन्त्र, पूजा, स्तोत्र आदि एक दूसरे के पूरक अंग माने गये हैं उसी प्रकार 'सहस्रनाम' भी एक पूरक अंग कहा गया है / प्रत्येक देवता की उपासना में जिन पांच अंगों का निर्देश तन्त्रों में किया गया है उनमें भी 'सहस्रनाम' की एक अंग के रूप में गणना है। इन्हीं सब दष्टियों से सभी धामिक सम्प्रदायों में अपने-अपने इष्टदेवों की स्तुति में सहस्रनामात्मक स्तोत्र बने हुए प्राप्त होते हैं / ___ कोई भी भक्त जब अपने इष्ट देव के गुणों का आख्यान करना चाहता है तो उसके सामने नाम, कर्म, गुणादि का एक विशाल स्रोत छलकता हरा दिखाई देता है। मानव' सान्त है प्रभु अनन्त है। अनन्त के नाम-कर्म-गुणादि भी अनन्त हैं। इनमें से वह अपने लिए किन को चने और किन को छोड़ दे ? यह प्रश्न उपस्थित होता है। महाभारत में युधिष्ठिर ने अपनी ऐसी ही किंकर्तव्य-विमूढावस्था में भीष्म से पूछा था१. गीता सहस्रनामानि स्तवः कवचमेव च / हृदयं चेति पञ्चैतत् पञ्चाङ्ग प्रोच्यते बुधः // 2. ऐसे अनेक सहस्रनाम स्तोत्रों की विशद विवेचना के लिये देखिए हमारे द्वारा रचित 'स्तोत्र शक्ति' में सहस्रनाम सम्वन्धी विचार /