Book Title: Arshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharati Jain Prakashan Samiti
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________________ ( 46 ) ___इस प्रकार केवल 16 वर्ष की अवस्था में आपने संसार के सभी प्रलोभनों का परित्याग करके साधु अवस्था-श्रमण जीवन को स्वीकार किया। तदनन्तर पूज्य गुरुदेव की छाया में रहकर आप शास्त्राभ्यास करने लगे, जिसमें प्रकरण ग्रन्थ, कर्मग्रन्थ, काव्य, कोष, व्याकरण तथा आगमादि ग्रन्थ का उत्तम पद्धति से अध्ययन किया और अपनी विरल प्रतिभा के कारण थोड़े समय में ही जैन धर्म के एक उच्चकोटि के विद्वान् के रूप में स्थान प्राप्त किया। . बहुमुखी व्यक्तित्व आपकी सर्जन-शक्ति साहित्य को प्रदीप्त करने लगी और कुछ वर्षों में तो आपने इस क्षेत्र में चिरस्मरणीय रहे ऐसे मंगल चिह्न अकित कर दिए जिसका संक्षिप्त परिचय इस ग्रन्थ के अन्त में दिया गया है। आप जैन साहित्य के अतिरिक्त शिल्प, ज्योतिष, स्थापत्य, इतिहास तथा मन्त्रशास्त्र के भी अच्छे ज्ञाता हैं, अतः मापकी विद्वत्ता सर्वतोमुखी बन गई है तथा अनेक जैन-जनेतर विद्वान्, कलाकार, सामाजिक कार्यकर्ता तथा प्रथम श्रेणी के राजकीय अधिकारी और नेतृवर्ग को उसने प्राकृष्ट किया है। आप अच्छे लेखक, प्रियवक्ता एवं उत्तम अवधान कार भी हैं। उदात्त कार्यकलाप जीवन के विविध क्षेत्रों में विकास-प्राप्त व्यक्तियों के विस्तृत परिचय के कारण आपकी ज्ञानधारा अधिक विशद बनी है, आपके विचारों में पर्याप्त उदात्तता पाई है तथा पाप धर्म के साथ ही समाज और राष्ट्र-कल्याण की दृष्टि को भी सम्मुख रखते रहे हैं / धार्मिक अनुष्ठानादि में भी आपकी प्रतिभा झलकती रही है तथा उसके फलस्वरूप उपधान-उद्यापन, उत्सब-महोत्सव आदि में जनता की अभिरुचि बढे ऐसे अनेक नवीन अभिगम मापने दिए हैं / जैन-जनेतर हजारों स्त्री-पुरुष प्राप से प्रेरणा प्राप्त करके प्राध्यात्मिक उत्कर्ष प्राप्त कर पाए हैं। प्रष्टग्रहयूति के समय 'विश्वशान्ति जैन पाराधना सन' की योजना आपके मन में स्फुरित हुई और पूज्य गुरुदेवों की सम्मति मिलने पर बम्बई महानगरी