Book Title: Arshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharati Jain Prakashan Samiti
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________________ - ( 37 ) साधन्त सम्पूर्ण वाचना इस प्रति से ही उपलब्ध है इस दृष्टि से इस प्रति का महत्त्व अत्यधिक है। 2. य० संज्ञक प्रति --यहां ऊपर बताई गई प्रति मिलने का ज्ञान मैंने प० पू० 50 श्रीयशोविजयजी महाराज (बम्बई) को दी और 'सिद्धनामकोश' सम्पादित करके 'सम्बोधि' नामक त्रैमासिक में प्रकाशित कर रहा हूं यह भी बतलाया। महाराज श्री यशोविजय जी ने तत्काल ही उनको प्राप्त 'सिद्धनामकोश' की प्रति का मुझे परिचय दिया / और यह भी बतलाया कि उन्हें जो प्रति प्राप्त हुई है उसमें प्रथम पत्र नहीं है / इतना होने पर भी उन्हें जितना भाग नहीं मिला है उतना भाग छोड़कर भी वे उसका सम्पादन प्रकाशन करने की तैयारी में थे, ऐसे समय पर मैंने उनको सम्पूर्ण प्रति प्राप्त होने की जानकारी दी तथा उनके पास वाली प्रति का उपयोग करने के लिए प्रार्थना की। इससे अत्यन्त प्रसन्न भाव से उन्होंने अपने पास वाली प्रति की फोटो स्टेट कॉपी निकलवाकर मुझे भिजवायी। उस फोटो कॉपी को देखते ही मंने अन्तःप्रमोद पूर्वक धन्यता का अनुभव किया / यह प्रति पूज्यपाद महोपाध्याय श्रीयशो विजय जी महाराज के स्वहस्त से लिखित है / श्रीयशोविजय जी महाराज ने अपनी अनक रचनाएं अपने हाथ से लिखी हैं और अन्त में लेखक के रूप में अपने नाम का उल्लेख प्रायः नहीं करते हैं / इस प्रकार प्रस्तुत "सिद्धनामकोश' के अन्त में भी उन्होंने लेखक के रूप में अपना नाम नहीं लिखा है। इतना होने पर भी स्वहस्ताक्षर के रूप में जहां अपना नाम लिखा है ऐसी प्रतियों के आधार पर पूज्यपाद मागम प्रभाकर मुनिवर्य श्री पुण्यविजय जी महाराज ने उनके द्वारा स्वहस्त से लिखी हुई तथा लेखक के नामोल्लेख से रहित अनेक प्रतियों का निर्णय किया है। ऐसी कुछ प्रतियां लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर' में सुरक्षित मुनि श्री पुण्यविजय जी के संग्रह में विद्यमान हैं। इनके अतिरिक्त 'डहेलाना उपाश्रय' (महमदाबाद) के ज्ञान भण्डार में भी वैराग्यरति ग्रन्थ है। पू० पा० उ० श्रीयशोविजय जी महाराज के हस्ताक्षरों के परीक्षण-प्रसंगों में पागम प्रभाकर जी के पास बैठकर देखने-सीखने का सौभाग्य मुझे अनेक बार प्राप्त हुआ है।