Book Title: Arshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharati Jain Prakashan Samiti
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________________ ( 34 ) जी उपाध्याय ने 'सिद्धसहस्रनामकोश' की रचना करके एक नई कड़ी जोड़ी है। इसमें भी 'दस शतक' प्रकाश हैं / इस कृति की उपलब्धि और प्रति का आकार-प्रकार सम्बन्धी विवरण इस ग्रन्थ के सम्पादक एवं संशोधक मुनिराज श्री यशोविजय जी महाराज (वर्तमान समय में आचार्य श्री यशोदेवसूरिजी) ने स्वयं और पं० अमतलाल मोहनलाल भोजक के द्वारा लिखित विचारों में पर्याप्त प्रकाश डाला है / जिन्हें यहां उनके निर्देशानुसार यथावत् प्रस्तुत किया जा रहा है- . कोश की प्रति के सम्बन्ध में श्रवणीय तथा स्मरणीय घटना -ले० प्राचार्य श्री यशोदेव सूरि 'सिद्धसहस्रनाम कोश' की हस्तलिखित प्रति मुझे सं० 2015 में प्राप्त हुई थी, जिसका संक्षिप्त इतिहास नीचे लिखे अनुसार है-- ___ [वि० सं० 2014 में बम्बई-बांटुगा में चातुर्मास पूर्ण हो जाने के बाद श्रत के परम अभ्यासी, विविध विषयों के श्रेष्ठ ग्रन्थों को प्रकाशित करने वाले, धर्मात्मा, श्रीमान् तथा धीमान् की ऋद्धि को प्राप्त और मेरे प्रति बहुत ही सहानुभूति दिखाने वाले, श्रेष्ठिवर्य श्री अमृत लाल कालीदास दोशी जो कि कुछ समय पूर्व ही स्वर्गवासी हुए हैं, उन्होंने अपने चल रहे संशोधन में उपस्थित कठिनाइयों पर विचार करने के लिये अधेरी-पारला पाने का मुझे प्रामन्त्रण दिया। __ इतिहास-महोदधि स्व० पूज्य प्राचार्य श्रीविजयेन्द्र सूरिजी जोकि अन्धेरी में विराजमान थे, उन्होंने भी मिलने की इच्छा से मुझे प्रामन्त्रण दिया था / प्रतः मैं पारला गया और दोशी सेठ के यहीं रहा / एक दिन मैं धर्मश्रद्धालु श्रेोष्ठिवर्य श्री भोगीलाल लहेरचन्द के बंगले के एक भाग में विराजमान प्राचार्य श्री इन्द्र सूरिजी के दर्शनार्थ गया। कदाचित् यह मेरा पहला ही मिलन था। सूरिजी को देखते ही मैंने नमस्कार किया। मुझ से मिलने के