Book Title: Arshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharati Jain Prakashan Samiti
View full book text
________________ (8) अलंकारों के सहयोग से आकर्षण का केन्द्र माना गया तथा 'यश, द्रव्य, व्यवहार एवं शिवे तरक्षति' के साथ ही सद्यः परनिर्वृति' का माध्यम होते हए भी ‘कान्तासम्मितोपदेश' का भी साधन बन गया। महाकाव्य के लक्षण . लक्षण-शास्त्रकारों की परम्परा में सर्वप्राचीन आचार्य भरत ने महाकाव्य का कोई स्वतन्त्र लक्षण नहीं दिया है, किन्तु उत्तरकालिक सभी प्राचार्यों का मत हैं कि उन्होंने 'मदूललितपदार्थ गूढशब्दार्थहीनं, बुधजनसुखयोग्य' इत्यादि जो नाटक का लक्षण दिया है वह काव्य के लिए भी ग्राह्य है। भामह' और दण्डी ने इस दिशा में जो लक्षण दिये हैं वे पर्याप्त विकसित हैं। रुद्रट ने इन लक्षणों में कुछ और आवश्यक तत्त्व जोड़ते हुए एक परिनिष्ठत रूप देने का प्रयास किया। जिसमें क्रमशः-१-उत्पाद्य अथवा अनुत्पाद्य लम्बी पद्यबद्ध कथा, २-अवान्तर कथाएं, ,३-सर्गबद्धता, ४-नाटकीयतत्त्व संयोजन, ५-जीवन को समग्रता का चित्रण, ६-नायक की उच्चता, ७-प्रतिनायक वर्णन, ८-नायक की अन्त में विजय, ह-महान् उद्देश्य और चतुर्वर्ग फलप्राप्ति, १०-रसात्मकता, ११-नगर एवं प्रकृति के वर्णन एवं १२-अलौकिक तथा अतिप्राकृतिक तत्त्वों का समावेश निदिष्ट है। विश्वनाथ सभी पूर्ववर्ती आचार्यों के लक्षणों का समाहार करते हुए-१-नायक की विशिष्टता, २-शृंगार, वीर अथवा शान्तरस की सीमितता, 1. तुलना कीजिये काव्यं यशसेऽर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये / सद्यः परनिर्वृतये कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे // काव्यप्रकाश 1/1/1 2. नाट्यशास्त्र 17/126 / 3. काव्यालङ्कार 1, 19-21 / 4. कार्योदर्श प्र. परि. 14-16) 5. काव्यालङ्कार म० 16. 10.2-16 /