Book Title: Arshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharati Jain Prakashan Samiti
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________________ प्राक्कथन यह परम हर्ष का विषय है कि न्यायविशारद, न्यायाचार्य, महोपाध्याय पूज्य श्रीमद् 'यशोविजयजी' महाराज द्वारा प्रणीत दो महाकाव्यों-(१) 'पार्षभीय-चरितमहाकाव्यम्' तथा (2) विजयोल्लास-महाकाव्यम्' के उपलब्ध अशों का सबसे पहली बार इस संग्रह में प्रकाशन हुआ है और साथ ही (3) 'सिद्धसहस्रनामकोश' ("प्रणवादि-नमोऽन्तनामावलो” सहित ) भी इस संङ्कलन में प्रकाशित है / ये तीनों ग्रन्थ प्रायः पाण्डुलिपि के रूप में यत्र-तत्र विकीर्ण थे इन्हें प्राप्त करके बड़े ही परिश्रम एवं लगन के साथ संकलित कर मुद्रण के योग्य रूप देते हुए संशोधन और सम्पादन करने वाले प्रधान सम्पादक साहित्य-कलारत्न पज्य प्राचार्य श्री यशोदेव सरिजी महाराज ने अपनी प्रतिव्यस्तता के कारण सम्पादन और मुद्रापण का आदेश देने के साथ ही अपने प्रमुख सम्पादकीय विचारों को भी इसी 'प्राक्कथन' में समाविष्ट करने तथा विस्तत-चिन्तन प्रस्तुत करने की मझे अनुमति दी। तदनुसार ही इन ग्रन्थों के बारे में आवश्यक बातों का निर्देश करते हुए समीक्षात्मक दृष्टि से यह 'प्राक्कथन' लिख रहा हूँ। आधुनिक पद्धति के अनुसार-'कृति और उसके पूर्वाङ्गउत्तराङ्ग का विवेचन करने से पाठकों को मूल-रचना के महत्त्व का सर्वांश में परिचय हो सकता है।' इस विश्वास से प्रस्तुत प्राक्कथन में तीनों कृतियों का तीन भागों में विवेचन करने का प्रयास किया जा रहा है तथा प्रारम्भ में "कवि-काव्यकार, कविशक्ति एवं प्रेरणा,