Book Title: Arshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharati Jain Prakashan Samiti
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________________ अशिक्षित, बालक किंवा वृद्ध सब के लिए लाभप्रद होता है। विविध प्रकार के भक्तिमार्ग की शरण दिव्य-प्रकाश देकर अन्त में आत्मसिद्धि प्राप्त कराती है। . अन्य सभी साधना के मार्ग कठिन हैं, दुर्गम हैं, कष्टसाध्य हैं / बुद्धि हो तो समझे जा सके ऐसे हैं और दीर्घ समय की अपेक्षा रखने वाले हैं / सामान्य कोटि के जीवों के लिए वे सुसाध्य नहीं हैं। इसीलिए तो एक अजैन कवि ने सारभूत नवनीत प्रस्तुत करते हुए कहा है - "पुराण को अन्त नहीं, वेदन को अन्त नहीं, वाणी तो अपार कही, कहां चित्त दीजिये; सबन को सार एक, रामनाम रामनाम लीजिए॥" इसलिए सभी ने आबालवृद्धों के लिए राजमार्ग ईश्वर-प्रभु-भगवत-स्मरण ही बताया है / क्योंकि ईश्वरस्मरण हृदय की ग्रंथियों को तोड़ने में बेजोड़ काम करता है। बाह्याभ्यन्तर दुःख, अशान्ति को भगा देता है। अतृप्ति से परिपूर्ण जीवन में परमतृप्ति और दावानल में जलते हुए को परम शान्ति देता है। इन नामों का जप भी किया जा सकता है और इसीलिए इस पुस्तक के अन्त में दिए गए परिशिष्ट में चतुर्थी विभक्ति में सभी नाम देकर अन्त में नमः शब्द जोड़कर सभी नाम दिए हैं। जिससे प्रत्येक पद जप के योग्य बना दिया है। इससे इसके अनुरागियों को रेडीमेड माल मिलने से अवश्य आनन्द होगा ही। अनेक नाम अर्थ की दृष्टि से आनन्द प्रदान करें, ऐसे हैं। इसकी यदि कोई टीका बनाये तो इसके वैशिष्टय का दर्शन ज्ञात हो / ___ अच्छा तो हम सब, सर्वगुण सम्पन्न, पुरुषोत्तम, सर्वोत्तम, सर्वोच्च कोटि की आत्माओं की नामगङ्गा में डुबकी लगाने का संकल्प करके मन, आत्मा और तन के मैल को धोते रहें।