Book Title: Arhat Vachan 2000 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 8
________________ तथा उसके द्वारा प्रकाशित जैन विद्वानों, पत्र - -पत्रिकाओं, शोध संस्थानों एवं प्रकाशकों की डायरेक्टरी 'सम्पर्क' जैन विद्या के अध्येताओं में भी पारस्परिक सम्पर्क विकसित करने में नींव का पत्थर साबित हुई है। इसके आगामी संस्करणों में अधिकाधिक जानकारियां जुड़ने और संशोधित होने पर यह एक सन्दर्भ ग्रन्थ का रूप ले लेगी। सम्पर्क की भारी मांग के कारण प्रथम संस्करण समाप्तप्राय है। द्वितीय संस्करण भी अक्टूबर 2000 तक प्रकाशित किये जाने की संभावना है। गत् 4 फरवरी 2000 को दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किला मैदान से भगवान ऋषभदेव अन्तर्राष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव का शुभारम्भ देश के प्रधानमंत्री माननीय श्री अटलबिहारी बाजपेयी ने किया। इस अवसर पर राष्ट्र के नाम अपने संदेश में माननीय प्रधानमंत्रीजी ने कहा कि मेरे सरकारी दफ्तर में जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति रखी है। उनका यह कथन भगवान महावीर के जैन धर्म के संस्थापक होने की भ्रांति को सहज ही समाप्त कर देता है क्योंकि महावीर तो उनके परिवर्ती 24 वें हैं । उनके उद्बोधन का सम्पूर्ण पाठ अर्हत् वचन, वर्ष 12, अंक- 1, जनवरी 2000 के पृष्ठ 91, 92 पर अविकल रूप में प्रकाशित है। महोत्सव वर्ष में अन्य गतिविधियों के साथ ही पाठ्यपुस्तकों में निहित विसंगतियों को दूर करने के लिये व्यापक जन चेतना जाग्रत हुई। डॉ. नीलम जैन- गाजियाबाद, डॉ. सुषमा जैन- सहारनपुर, श्रीमती सुमन जैन - इन्दौर जैसी विदुषी महिलाएँ तो कार्यरत हैं हीं, दिगम्बर जैन सोशल ग्रुप 'नेमिनाथ', इन्दौर ने भी धर्म सभा एवं समाचार पत्रों के माध्यम से एक व्यापक मुहिम छेड़ रखी है। दिगम्बर जैन महासमिति, अ. भा. दिगम्बर जैन महिला संगठन, अ. भा. दि. जैन युवा परिषद, तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ सदृश संस्थाएँ भी अपने-अपने तरीके से सक्रिय हैं। श्री खिल्लीमल जैन 'एडवोकेट', अलवर लगभग 2 वर्षों से N.C.E.R.T. तथा अन्य संस्थाओं से इस सम्बन्ध में सतत् सम्पर्क बनाये हुए हैं। परम पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा एवं उनके सान्निध्य में तथा श्री खिल्लीमलजी के संयोजकत्व में जैन धर्म की प्राचीनता पर एक राष्ट्रीय सेमिनार 11 जून 2000 को जम्बूद्वीप - हस्तिनापुर में आयोजित किया गया। जिसमें N.C.E.R.T. ने अपने प्रतिनिधि डॉ. प्रीतिश आचार्य को भेजकर तथ्यों की जानकारी प्राप्त की। इस सेमिनार में पारित प्रस्ताव अर्हत् वचन के इसी अंक में पृ. 71, 72 पर प्रकाशित है। इस सम्पूर्ण चर्चा का सार यह है कि पूरे देश में जैन धर्म की प्राचीनता स्थापित करने तथा भगवान ऋषभदेव के अवदान को स्वीकार करने के निमित्त व्यापक जन जाग्रति आई है और हमें इस जाग्रति का उपयोग तथ्यों की पुनर्स्थापना एवं त्रुटियों के निराकरण हेतु सम्यक् रूप से करना है। प्रो. रामशरण शर्मा एक वरिष्ठ इतिहासकार हैं और वे अनेक इतिहासज्ञों, जैन विद्या के अध्येताओं की भावनाओं, पौराणिक सन्दर्भों को अवश्य आत्मसात करेंगे तथा भारतीय संस्कृति के आद्य प्रणेता भगवान ऋषभदेव के मानवता को दिये अवदान एवं पौराणिक जैन मान्यताओं को भी अन्य धर्मों के समान ही समुचित आदर प्रदान करेंगे । इतिहास की दृष्टि सीमित होती है। फलतः प्रागैतिहासिक विवरणों हेतु हमें किंवदंतियों को ही आधार बनाना पड़ता है। हमें केवल डॉ. रामशरण शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक 'प्राचीन भारत' में ही संशोधन नहीं कराना है अपितु जहाँ-जहाँ, जिन-जिन पुस्तकों में त्रुटियां हैं उन 6 अर्हत् वचन, जुलाई 2000

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