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पुस्तक समीक्षा _ विविधरूपेण सामग्री से परिपूर्ण पठनीय कृति अभिवन्दना पुष्प : परमपूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी के एकादश दीक्षा
दिवस पर प्रकाशित सम्पादक : श्री निर्मल जैन, सतना एवं अन्य प्रबन्ध सम्पादक : ब्र. अतुल भैया प्रकाशक : प्राच्य श्रमण भारती, 12/1, प्रेमपुरी, मुजफ्फरनगर
समीक्षक : कोकलचन्द जैन (वरिष्ठ पत्रकार), जयपुर 'अभिवन्दना पुष्प' नाम के अनुरूप ही एक विशिष्ट कृति है। देशभर में सुदूर अन्तरंग इलाकों से अनेकों विद्वज्जनों की भावाभिव्यक्ति का अद्भुत संयोजन है। इस वैशिष्ट्यपूर्ण प्रकाशन का अपूर्व प्रसंग बना परमपूज्य उपाध्याय 108 श्री ज्ञानसागरजी महाराज का एकादश दीक्षा दिवस श्री महावीर जयंती 1999 के पावन सुयोग पर सीकर में।
नि:संदेह पूज्यश्री के लिए तो इन सब बातों से रंच मात्र भी सरोकार नहीं। तथापि पूज्यश्री के पावन सान्निध्य को पाकर समय-समय पर कृतार्थ भव्यजनों के लिए उल्लास और समर्पण के साथ अपनी विनयान्जलि की प्रस्तुति के सुअवसर का सृजन अवश्य हो सका। अलबत्ता यह एक सुविदित तथ्य है कि मनोभावों / भावनाओं की शाब्दिक अभिव्यक्ति कोई सहज संभाव्य नहीं बन पाती।
उल्लेखनीय होगा कि उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज सहज भाव से समाज के समग्र, सर्वांगीण, उन्नयन, निमित्त, उत्प्रेरक, सार्थक सद् - प्रयासों के प्रणेता बने हुए हैं। सराकोत्थान की दिशा में लाखों की संख्या में उपेक्षित सराक बन्धुओं के लिए समाज की मुख्य धारा में जुड़ाव का मार्ग प्रशस्त किया है। यह अपने आप में ही बहुत बड़ी बात
___पूज्यश्री अपरिमित विद्धत्वात्सल्य से ओतप्रोत, अतुलनीय, क्षयोपशम के धनी, निस्पृह निर्ग्रन्थ सन्त, आगम अध्यात्म के महान उपदेष्टा हैं। ज्ञानार्जन एवं ज्ञान के आलोक का अंकुरण करते हुए ज्ञानोपलब्धि का प्रस्फुटन, विलुप्तप्राय साहित्य का अन्वेषण, शोधपरक अध्ययन को प्रकाशित करना आदि अत्यन्त महत्वपूर्ण उद्देश्यों के उपदेष्टा है। अस्तु. गरिमामय गौरव को अक्षुण्ण बनाए रखने की प्रतिबद्धता ही तो परिलक्षित होती है।
. सर्वाधिक महत्वपूर्ण और प्रभावकारी लगते हैं पूज्यश्री की पूर्व दैनन्दिनी से संकलित, मुक्ताकण मुख्य रूप से पूज्यश्री की तप:साधना, वर्षायोग, ज्ञान के प्रसार, गृहस्थ धर्म, विद्वज्जनों हेतु उद्बोधन, शाकाहार, सराकोद्धार एवं अन्य विविध विषय विशेष उल्लेखनीय हैं। ऐसी लोकोपयोगी सामग्री और जानकारियों का संकलन व प्रकाशन जन - जन के लिए हितावह, कल्याणकारी और श्रेयस्कर है।
___ 'अभिवन्दना पुष्प' विविधरूपेण सारगर्भित सामग्री से परिपूर्ण पठनीय, मननीय और संग्रहणीय कृति है। विद्धज्जनों के मन्तव्य की अभिव्यक्ति के साथ ही साथ व्यापक रूप से पूज्यश्री के अवदान को संजोकर सुरूचिपूर्ण समावेश किया गया है। एतावता इसे 'गागर में सागर' के रूप में देखा जाए तो कोई अतिशयोक्ति की बात नहीं होगी।
अर्हत् वचन, जुलाई 2000