Book Title: Arhat Vachan 2000 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 75
________________ आख्या अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर भगवान ऋषभदेव संगोष्ठी जम्बूद्वीप - हस्तिनापुर, दिनांक 21 मई 2000 - कृष्णा जैन* 21 मई 2000 को जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर में परम पूज्य, गणिनीप्रमुख, आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी के सान्निध्य में तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ की साधारण सभा की बैठक के अवसर पर रात्रि 8.00 बजे से भगवान ऋषभदेव संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका सफल संचालन महामंत्री डॉ. अनुपम जैन, इन्दौर ने किया। महासंघ के अध्यक्ष पं. शिवचरनलाल जैन, मैनपुरी की अध्यक्षता में सम्पन्न संगोष्ठी का शुभारम्भ डॉ. सुरेश जैन, लखनादौन के मंगलाचरण से हुआ। डॉ. सुरेश जैन ने भगवान ऋषभदेव के जबलपुर संभाग में शिल्पांकन के वैशिष्ट्य का प्रतिपादन किया। प्रो. के. के. जैन, बीना ने कहा कि भगवान ऋषभदेव ने मानव मात्र को जीवन जीने की कला सिखाई। युग परिवर्तन के समय पुरुषार्थ की सीख दी। साथ ही माता बहनों के लिये जीवन जीने के मूल्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यदि हम वास्तव में भगवान ऋषभदेव के सिद्धान्तों का प्रचार एवं प्रसार करना चाहते हैं तो हमें गाँव - गाँव, गली-गली एवं चौपालों पर जन चेतना एवं वैचारिक क्रांति लानी होगी। डॉ. (श्रीमती) कृष्णा जैन, ग्वालियर ने भगवान आदिनाथ के वैश्विक स्वरूप को स्पष्ट करते हुए उनकी शिक्षाओं, सिद्धान्तों को जन-जन तक फैलाने की बात कही। भगवान ऋषभदेव वही अतिमानव हैं जिन्होंने मनुष्य को बर्बर युग से त्राण दिलाकर सभ्यता एवं संस्कृति की ओर उन्मुख किया। ऐसे अतिमानव के बारे में प्रचलित भ्रांतियों को दूरकर उनके वैश्विक स्वरूप को जनता के सामने लाना है। शोध छात्रा कु. बबीता जैन, ग्वालियर ने अहिंसक खेती एवं श्रम मार्ग के उपदेशक के रूप में भगवान आदिनाथ का विवेचन किया। श्री सूरजमल बोबरा, इन्दौर ने कुछ संकेतों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि जब सर्वप्रथम आचार्यों ने जम्बूद्वीप की रचना के बारे में सोचा होगा, कैसे यह संकल्पना उनके मन में आई होगी, हमें इन संकेतों को एकत्रित करना चाहिये। भगवान मुनिसुव्रतनाथ तक तो हम जा हीं सकते हैं। इस प्रागैतिहासिक काल तक संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए श्री सूरजमल बोबरा हम उन संकेतों को पा सकते हैं। डॉ. वन्दना जैन, आगर-मालवा ने भगवान ऋषभदेव की ऐतिहासिकता पर अपने विचार व्यक्त किया। डॉ. सरोज जैन, बीना ने भगवान ऋषभदेव को नारी शिक्षा का आदि प्रवर्तक कहा। उन्होंने अपनी दोनों पुत्रियों - ब्राह्मी और सुन्दरी को शिक्षा देकर नारी शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया। डॉ. संजीव सराफ, सागर ने कुछ प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए कहा कि भगवान ऋषभदेव परिनिर्वाण महोत्सव पर डाक तार विभाग से अपील की जाये कि वह एक डाक टिकिट जारी करे एवं रेल मंत्रालय से भी आग्रह किया जावे कि वह भगवान आदिनाथ से भगवान महावीर तक की परम्परा से सम्बद्ध स्थलों को जोड़ने हेतु एक पर्यटन रेल प्रारम्भ करे। भगवान ऋषभदेव की शिक्षाओं पर आधारित सीरियल तैयार हों क्योंकि इनका असर जनता पर अति शीघ्र होता है एवं संगोष्ठियों के माध्यम से उनकी वैज्ञानिकता को उभारने पर बल दिया। अर्हत् वचन, जुलाई 2000 73

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