Book Title: Arhat Vachan 2000 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 84
________________ अहिंसा इण्टरनेशनल द्वारा जैन धर्म पर संपूर्ण पुस्तक लेखन के लिए 51 हजार रुपये का पुरस्कार अभी तक जैन धर्म पर कोई संपूर्ण पुस्तक उपलब्ध नहीं है, जिसका अभाव देश एवं विदेश दोनों में ही खटक रहा है। अहिंसा इण्टरनेशनल ने देश के अतिख्याति प्राप्त विद्वानों से साक्षात बैठक में विचार विमर्श कर इस पुस्तक के लिए निम्न परिच्छेद निश्चित किये 1. उद्भव (20 पृष्ठ) 2. विकास (30 पृष्ठ) 3. धर्म (40 पृष्ठ) 4. दर्शन (40 पृष्ठ) 5. जैन योग तंत्र - मंत्र (30 पृष्ठ) 6. भाषा (30 पृष्ठ) 7. साहित्य (40 पृष्ठ) 8. जैन संघ (40 पृष्ठ) 9. समाज (30 पृष्ठ) 10. विदेशों में जैन धर्म (30 पृष्ठ) 11. मूलाचार (30 पृष्ठ) 12. श्रावकाचार (30 पृष्ठ) 13. आहार - शाकाहार (20 पृष्ठ) 14. जैन विज्ञान (30 पृष्ठ) 15. संस्कृति (30 पृष्ठ) 16. जैन कला, पुरातत्व एवं तीर्थ (80 पृष्ठ)। कुल 550 पृष्ठ की यह पुस्तक रॉयल आक्टेव आकार में हिन्दी में बहुत अच्छे कागज पर प्रकाशित होनी है। उपर्युक्त परिच्छेदों पर पुस्तक की टाइप की हुई दो पाण्डुलिपियां भेजना आवश्यक है। पुस्तक की भाषा साहित्यिक हिन्दी होनी है, किन्तु संस्कृतनिष्ठ नहीं। उर्दू शब्दों का प्रयोग नहीं। सामग्री प्रामाणिक हो। भाषा प्रवाह तथा तारतम्य का विशेष ध्यान रहे। सर्वोत्तम कृति के कृतिकार को 51 हजार का पुरस्कार एक भव्य समारोह में दिल्ली में भेंट किया जायेगा। पुस्तक लेखन पर अन्य रायल्टी नहीं दी जायेगी। पुस्तक के स्व - प्रकाशन अथवा अन्य प्रकाशक से प्रकाशन पर अधिकार अहिंसा इण्टरनेशनल का होगा। पुस्तक सचित्र होगी, जिसके लिए चित्र अहिंसा इण्टरनेशनल उपलब्ध करेगा। लेखक भी बहुत सुन्दर चित्र दे सकते हैं। पाण्डुलिपि में संशोधन करने का अधिकार अहिंसा इण्टरनेशनल को रहेगा। पाण्डुलिपि लगभग दिसम्बर 2000 के अंत तक निम्न पते पर प्राप्त होना अपेक्षित है। श्री सतीश कुमार जैन, महासचिव, अहिंसा इण्टरनेशनल सी - III/3129 बसंतकुंज, नई दिल्ली - 110070 जैन विद्या का पठनीय षट्मासिक JINAMANJARI Editor - S.A. Bhuvanendra Kumar Periodicity - Bi-annual (April & October) Publisher - Brahmi Society, Canada-U.S.A. Contact - Dr. S.A. Bhuvanendra Kumar 4665, Moccasin Trail, MISSISSAUGA, ONTARIO, Canada |4z2w5 JINAMANJARI - - - we- imsimar Kaylore JAINA HISTORIC ASPECTS OF INDIA 82 अर्हत् वचन, जुलाई 2000

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