Book Title: Arhat Vachan 2000 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 83
________________ श्री सम्मेशिखरजी में खुदाई में 19 दिगम्बर जैन मूर्तियाँ मिलीं बिहार के गिरिडीह जिलान्तर्गत मधुबन में स्थित जैनों के पवित्रतम तीर्थ श्री सम्मेदशिखर में नीचे स्थित भौमियांजी के मूर्तिपूजक श्वेताम्बर जैन मन्दिर के परिसर की पृष्ठभूमि में विगत दिनों 19 जैन मूर्तियां खुदाई में निकली हैं। ये सभी दिगम्बर जैन मूर्तियां हैं तथा प्राप्त विवरण के अनुसार लगभग 500 वर्ष पूर्व सन् 1491 ई. में जयपुर के भट्टारक श्री जिनचन्द्र के निर्देशन में दिगम्बर जैन श्रावक श्री जीवराज पापड़ीवाल ने प्रतिष्ठित करवा के शिखरजी में विराजमान कराई थीं। इस आशय का उल्लेख संदर्भ ग्रन्थों में प्राप्त है। __ प्रसिद्ध इतिहासज्ञ डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल द्वारा लिखित तथा 1989 में प्रकाशित पुस्तक 'खण्डेलवाल जैन समाज का वृहद् इतिहास' में लिखा है कि भट्टारक श्री जिनचन्द्रजी से श्री जीवराज पापड़ीवाल ने मंडासा (राजस्थान) में संवत् 1548 (सन् 1491 ई.) में एक विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराई थी जिसमें एक लाख दिगम्बर जैन मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवा कर उन्हें देश के सभी प्रमुख भागों में मन्दिरों व तीर्थों पर विराजमान कराने के लिये भेजा था। दिल्ली के प्रसिद्ध श्री दिगम्बर जैन लाल मन्दिर की मुख्य बेदी में विराजमान भगवान पार्श्वनाथ की व अन्य प्रतिमाएँ भी उन्हीं में से बताई जाती हैं और उन पर सन् 1491 (संवत् 1548) अंकित है। जैन सभा, दिल्ली द्वारा सन् 1961 व 1970 में प्रकाशित जैन डाइरेक्टरी में इसका स्पष्ट वर्णन है। देश के जयपुर, नागौर, अजमेर, हैदराबाद, नागपुर, इन्दौर आदि नगरों में ये मूर्तियां इस प्रशस्ति के साथ विराजमान हैं। इन मूर्तियों के प्राप्त होने से दिगम्बर जैन समाज में व्यापक हर्ष है और इसे उनकी इस धारणा को बल मिलता है कि पारसनाथ पर्वत (शिखरजी) पर कभी पारसनाथ टोंक, जल मन्दिर तथा अन्यत्र दिगम्बर जैन मूर्तियां विराजमान थीं। खुदाई में मिली ये मूर्तियां संभवत: उन्हीं में से हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि वहां न केवल अभी और दिगम्बर जैन मूर्तियां दबी हुई हैं। अपितु भगवान पार्शर्वनाथ की वह मूर्ति संभवत: वहीं है जो पारसनाथ टोंक पर थी। यह उल्लेखनीय है कि सन् 1905 के आसपास अनेक दिगम्बर जैन मूर्तियां सम्मेदशिखर पर्वत से गायब हुई थीं, जिनको लेकर तत्कालीन दिगम्बर जैन समाज ने शिकायत दर्ज की थी, दिगम्बर जैन समाज की यह चिन्ता और अपेक्षा है कि इन मूर्तियों को यथाशीघ्र उनके पूर्व स्थान पर विराजमान किया जाये ताकि उनकी पूजा - अर्चना प्रारम्भ हो जाये। ___ भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष साहू रमेशचन्द जैन ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की महानिदेशक श्रीमती कोमल वर्धन को एक पत्र देकर अनुरोध किया है कि श्री शिखरजी में सरकारी अधिकारियों के संरक्षण में रखी ये मूर्तियां दिगम्बर जैन समाज को सौंपी जाये क्योंकि ये सभी मूर्तियां पूजनीय हैं तथा प्राप्त होने के बाद उनकी अवमानना से समाज की भावनाएं आहत होती हैं। समाज चाहता है कि इनकी विधिवत पूजा-अर्चना की जाये। गिरिडीह (बिहार) से श्री अमलकुमार जैन की सूचना के आधार पर खुदाई में प्राप्त प्रतिमाओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है - (1) पार्श्वनाथ (अगल-बगल में चन्द्रप्रभु, कुन्थुनाथ, मुनिसुव्रत और पद्मप्रभु), (2) शांतिनाथ, (3) शांतिनाथ (जीवराज पापड़ीवाल सवत् 1548), (4) कोई चिन्ह अभिलेख नहीं, (5) बिना चिन्ह संवत् 1725, (6) पार्श्वनाथ 9 फण, 1548, (7) शांतिनाथ - जीवराज पापड़ीवाल, (8) पार्श्वनाथ मूलनायक - चौबीसी, 1548, जीवराज पापड़ीवाल, (७) पद्मावती - पीछे पार्श्वनाथ, (10) पार्श्वनाथ, 1548, (11) पार्श्वनाथ, 1548, जीवराज पापड़ीवाल, जिनचन्द्र भट्टारक, (12) पार्श्वनाथ, जीवराज पापड़ीवाल, (13) पार्श्वनाथ, श्री मूलसंघ भट्टारक जिनचन्द्रजी, 1548, जीवराज पापड़ीवाल, (14) आदिनाथ, 1548, (15) पार्श्वनाथ, 1548, जीवराज पापड़ीवाल, (16) पार्श्वनाथ, 1548, जीवराज, (17) पद्मावती - पार्श्वनाथ, 1548, (18) पार्श्वनाथ, 1548, (19) पार्श्वनाथ की खण्डित मूर्ति। अर्हत् वचन, जुलाई 2000

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