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अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
आख्या
अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सम्मेलन
चैन्नई, दिनांक 28-31 मई 2000
• कृष्णा जैन
दिनांक 28 मई 2000 को चैन्नई में मद्रास विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के सौजन्य से 40 में अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सम्मेलन का उद्घाटन सत्यभामा इंजीनियरिंग कॉलेज के विशाल प्रांगण में हुआ। जिसमें देश के लगभग 1500 विद्वानों ने इस ज्ञान यज्ञ में अपनी आहुति दी। संस्कृत, वांगमय एवं प्राच्य विद्या के 20 सेक्शन इस सम्मेलन में आयोजित किये गये ।
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अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सम्मेलन में प्राकृत एवं जैन विद्या विभाग की अध्यक्षता करने का श्रेय इसी विभाग के अध्यक्ष डॉ. प्रेमसुमन जैन (मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर) को प्राप्त हुआ। आप प्राच्य विद्या सम्मेलन की कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं। इस विभाग में लगभग 60 से अधिक जैन विद्वानों की उपस्थिति रही। डॉ. श्रीमती कृष्णा जैन, सहायक प्राध्यापिका - संस्कृत, महारानी लक्ष्मीबाई कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय ग्वालियर ने अन्य विद्वानों के साथ मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। आपने अपना शोध पत्र प्रस्तुत कर ग्वालियर महानगर एवं मध्यप्रदेश का गौरव बढाया श्री नीरज जैन (सतना), श्री रामजी राय (भोजपुर), डॉ. सुदीप जैन (दिल्ली), डॉ. जयकुमार उपाध्ये (दिल्ली), श्री कमलेश्वर सी. चौकसी ( अहमदाबाद), डॉ. वेणीमाधव जोशी ( धारवाड़ ), डॉ. रानी मजूमदार (अलीगढ़), डॉ. जिनेन्द्र जैन (लाडनूं), डॉ. अशोककुमार जैन (लाडनूं). डा. विजयकुमार जैन (लखनऊ), श्रीमती राका जैन (लखनऊ), डॉ. सुचित्रा राय (हाजीनगर), डॉ. एन. वसुपाल (चैन्नई), श्रीमती प्रिया जैन ( चैन्नई), श्री एस. कृष्णचन्द चौरड़िया ( चैन्नई), डॉ. आर. एस. सैनी, डॉ. कमलेश जैन (दिल्ली), डॉ. सत्यरंजन बनर्जी (कलकत्ता) आदि विद्वानों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. प्रेमसुमनजी ने कहा कि आज विश्व में स्थान स्थान पर जैन धर्म एवं प्राकृत विषय पर अध्ययन एवं अनुसंधान हो रहा है। हमें जैन धर्म के साहित्य के अध्ययन एवं अनुसंधान को आगे बढ़ाना है। प्रत्येक जैन के घर से माता बहनें एवं भाई इसको अपने अध्ययन का विषय बनायें तो वह दिन दूर नहीं जबकि विश्व क्षितिज पर यह धर्म, दर्शन अपने गौरवशाली इतिहास को प्रकट कर सकेगा आपके अध्यक्षीय उद्बोधन को परमपूज्य आचार्य श्री विद्यानंदजी महाराज की प्रेरणा से कुन्दकुन्द भारती, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया 'प्राकृत और जैन धर्म का अध्ययन (बीसवीं सदी के अंतिम दशक में ) शीर्षक से प्रकाशित यह पुस्तक समस्त विद्वानों को वितरित की गई पुस्तक में कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर की गतिविधियों को प्रमुखता से उल्लिखित किया गया है।
अर्हत् वचन, जुलाई 2000
दिनांक 29 मई 2000 को सायं 5.00 बजे से रात्रि 10.00 बजे तक श्री जैन आराधना भवन, 351, मिंट स्ट्रीट, साहुकारपेट, चैन्नई में चैन्नई की जैन समाज द्वारा विद्वानों का भावभीना स्वागत एवं अभिनन्दन किया गया। इस अभिनन्दन में चैन्नई जैन समाज की सभी संस्थायें सम्मिलित थीं। समाज सेविका श्रीमती सरिता जैन द्वारा भी विद्वानों का फलों के पैकेट से अभिनन्दन किया गया। चैन्नई जैन समाज के इस अभिनन्दन से सभी विद्वान अभिभूत थे। साथ ही एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव अध्यक्ष महोदय के द्वारा समाज के सामने रखा गया कि प्राकृत के विश्व सम्मेलन की आवश्यकता विगत कई वर्षों से महसूस की जा रही है। चैन्नई जैन समाज इस को सम्पन्न कराने में आगे आये । इस प्रस्ताव को समाज की ओर से सहर्ष स्वीकार किया गया।
* सहायक प्राध्यापिका संस्कृत, महारानी लक्ष्मीबाई कला एवं वाणिज्य स्वशासी महाविद्यालय, ग्वालियर
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