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1008 संगोष्ठियों की श्रृंखला में 11 जून 2000 को परम पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी (ससंघ) के मंगल सान्निध्य में दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान के द्वारा जम्बूद्वीप - हस्तिनापुर तीर्थ क्षेत्र पर "जैनधर्म की प्राचीनता' विषय पर राष्ट्रीय स्तर का एक सेमिनार आयोजित किया गया जिसमें देशभर से पधारे विद्वानों, इतिहासकारों एवं पुरातत्वविदों ने भाग लिया।
इसमें राष्ट्रीय स्तर पर पढ़ायी जाने वाली पाठ्यपुस्तकों में उपस्थित जैन धर्म से सम्बन्धित विसंगतियों को दूर करने हेतु विविध प्रमाणों से संयुक्त आलेखों का प्रभावपूर्ण प्रस्तुतीकरण किया गया।
इस प्रस्तुतीकरण के आधार पर निम्नांकित तथ्यों को सर्वसम्मति से संस्तुत किया गया - 1. इतिहास का निर्माण करने हेतु मात्र ऐतिहासिक साक्ष्य ही परिपूर्ण नहीं होते हैं, वरन् उसमें
आगम ग्रन्थ, साहित्यिक साक्ष्यों तथा पुरातात्विक साक्ष्यों का समायोजन भी अत्यंत आवश्यक है, तभी उसमें पूर्णता का समावेश हो सकता है। ऐतिहासिक प्रमाणों की अनुपलब्धता मात्र से किसी के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता। 2. राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर पाठ्यपुस्तकों का निर्माण करने वाली शैक्षणिक संस्थाओं को धर्म
अथवा संस्कृति विशेष पर पाठ्य सामग्री लिखने हेतु तद् विषयक विद्वानों एवं सम्बद्ध धर्मज्ञों
को आमंत्रित करना चाहिये। 3. जैनधर्म की मूलभूत विषयवस्तु तथा भगवान ऋषभदेव से सम्बद्ध एक पुस्तिका राष्ट्रीय स्तर के
सरकारी प्रकाशन के माध्यम से प्रकाशित की जाये ताकि जन-जन तक सही तथ्य पहुँच सकें। 4. पाठ्यपुस्तकों में जहाँ कहीं भी जैनधर्म विषयक विसंगतियाँ हैं, उनको दूर करने हेतु पुस्तक के
लेखक - प्रकाशक इत्यादि से व्यक्तिगत स्तर पर सौहार्द्रपूर्ण बातचीत द्वारा सही प्रमाणों को प्रस्तुत
करके परिवर्तन कराने का सृजनात्मक प्रयास किया जाये। 5. राज्यों की पाठ्यपुस्तक समितियों, राज्य शैक्षणिक एवं अनुसंधान परिषद (S.C.E.R.T) तथा राष्ट्रीय
शैक्षणिक एवं अनुसंधान परिषद (N.C.E.R.T.) से अनुरोध है कि अपने यहाँ पुनरीक्षण कार्यशालाओं का आयोजन करके अपने संस्थानों से प्रकाशित पुस्तकों में जैन धर्म विषयक तथ्यात्मक विसंगतियों
को दूर करना सुनिश्चित करें ताकि प्रामाणिक तथ्य ही जन - जन तक पहुँच सकें। 6. इतिहास, साहित्य एवं संस्कृति से सम्बन्धित पाठ्यपुस्तकों में इस युग में जैन धर्म के प्रथम
प्रवर्तक आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का स्वतंत्र पाठ अवश्य समाहित किया जाये। सेमिनार में प्रतिभागी विद्वानों की सूची - 1. डॉ. प्रीतिश आचार्य, एन.सी.ई.आर.टी, दिल्ली 2. प्रो. विजयकुमार पाण्डेय, डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद 3. डॉ. शुभचन्द्र, मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर 4. डॉ. एन. वसुपाल, मद्रास विश्वविद्यालय, चेन्नई 5. डॉ. रमेश जैन, नगर नियोजन वास्तु विज्ञान विभाग, एम.ए.सी.टी. भोपाल 6. डॉ. देवेन्द्रस्वरूप अग्रवाल, पूर्व सम्पादक - पाँचजन्य, नई दिल्ली 7. डॉ. श्रवणकुमार गुप्ता, अलवर । 8. डॉ. सी.पी. माथुर, निदेक - मनोवैज्ञानिक परीक्षण, परामर्श प्रबन्ध अध्ययन केन्द्र, अलवर 9. श्री राजमल जैन, वरिष्ठ इतिहास विद, नई दिल्ली 10. डॉ. संजीव सराफ, पुस्तकालयाध्यक्ष, सागर
श्री आर. एस. जैन, अलवर 12. श्री खिल्लीमल जैन, वरिष्ठ अधिवक्ता, अलवर (संयोजक)
* एडवोकेट, 2 विकास पथ,
अलवर (राज.)
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अर्हत् वचन, जुलाई 2000