Book Title: Arhat Vachan 2000 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 77
________________ घोषणा पत्र अर्हत् वचन (कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) जैनधर्म की प्राचीनता पर राष्ट्रीय सेमिनार जम्बूद्वीप - हस्तिनापुर, दिनांक 11 जून 2000 खिल्लीमल जैन* जैन धर्म की प्राचीनता एवं भगवान ऋषभदेव की जन कल्याणकारी शिक्षाओं के विश्वव्यापी प्रचार हेतु गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने 12 मार्च 1996 को कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर में ऋषभ जयंती 97 से ऋषभ जयंती 98 तक भगवान ऋषभदेव जन्मजयंती महामहोत्सव मनाने की घोषणा की थी। इस वर्ष की सफलतापूर्वक समाप्ति के बाद 4-6 अक्टूबर 98 के मध्य भगवान ऋषभदेव राष्ट्रीय कुलपति सम्मेलन का आयोजन माताजी की ही प्रेरणा एवं उनके ससंघ सान्निध्य में सम्पन्न हुआ। इसकी विस्तृत आख्या का भी प्रकाशन किया जा चुका है। ऋषभ निर्वाण दिवस 4 फरवरी 2000 को अन्तर्राष्ट्रीय भगवान ऋषभदेव निर्वाण महोत्सव वर्ष का उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी बाजपेयी द्वारा किया जा चुका है। माताजी की ही प्रेरणा से श्री खिल्लीमल जैन एडवोकेट ने NCERT द्वारा प्रकाशित प्राचीन भारत पाठ्यपुस्तक तथा अन्य पाठ्यपुस्तकों में निहित जैन धर्म के विषय में भ्रामक जानकारियों के परिष्कार हेतु एक मुहिम चलाई। इसी श्रृंखला में दि. जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर में 11 जून 2000 को एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया जिसमें पारित प्रस्ताव की अविकल प्रति यहाँ प्रस्तुत है। सम्पादक प्रस्ताविक - जैनधर्म अनादिकाल से चला आया शाश्वत, प्राकृतिक एवं सार्वभौमिक धर्म है। वस्तुत: जीवन की वास्तविक आचार संहिता का दूसरा नाम है - जैनधर्म। किन आचार बिन्दुओं को लेकर किस प्रकार जीवन का निर्वहन किया जाये, उस कला का सम्यक् उद्बोधन देने वाले सारे सूत्र जिसमें निहित हैं - वह है जैन दर्शन। अनादिकाल से यदि जीवन है तो अनादिकाल से ही जीवन कला है और इसीलिये अनादिकालीन ही जिनशासन है। इस युग में भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर तक 24 तीर्थंकरों ने इस आदि - परम्परा का प्रतिपादन किया है। अत: इस अनादिनिधन जैनधर्म का कोई मूलभूत संस्थापक नहीं है वरन् इस युग में भगवान ऋषभदेव इसके प्रथम प्रवर्तक थे। भगवान महावीर स्वामी परम्परा के अंतिम तीर्थंकर - प्रवर्तक थे, संस्थापक नहीं। गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी का व्यक्तित्व जैन समाज की परम तपस्वी, निर्दोषतम चारित्र की धारक, वर्तमान की माँ ब्राह्मी, जैनधर्म की ध्वजा को सम्पूर्ण विश्व में फहराने वाली परम पूज्य माताजी का जीवन धर्ममार्ग में प्रति क्षण व्युत्पन्न कर्मठता की अद्भुत मिसाल है। अगाध ज्ञान - निधि की समायोजना करने वाली पू. माताजी का हृदय समस्त जीव - राशि के कल्याण की कामना से अखिल विश्व में जिनधर्म के प्रचार-प्रसार का सदैव परिपोषक रहता है। इस श्रृंखला में युग के प्रथम तीर्थंकर आदिब्रह्मा भगवान ऋषभदेव के नाम एवं जीवन दर्शन को विश्व के क्षितिज पर पुनप्रतिष्ठापित करने का महान लक्ष्य पू. माताजी ने वर्तमान में निर्धारित कर रखा है। भगवान ऋषभदेव जन्म जयंती महोत्सव, राष्ट्रीय कुलपति सम्मेलन, समवसरण - रथ श्रीविहार तथा वर्तमान में भगवान ऋषभदेव अन्तर्राष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव वर्ष इसी श्रृंखला के स्तम्भ हैं। जैनधर्म की प्राचीनता पर सेमिनार प्रधान मंत्री श्री अटलबिहारी बाजपेयी द्वारा 4 फरवरी 2000 को उद्घाटित 'भगवान ऋषभदेव अन्तर्राष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव वर्ष' के अन्तर्गत आयोजित की जाने वाली भगवान ऋषभदेव पर - अर्हत् वचन, जुलाई 2000

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