Book Title: Arhat Vachan 2000 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 71
________________ अर्हत्व कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर टिप्पणी - 2 विकास का खंडहर सबका हित किस में है ? ■ राजेश जोशी * विकास की बीमारी का एक स्थायी लक्षण है बहुत सारे लोगों को बेकार कर बहुत कम लोगों को रोजी रोटी देना। यंत्रवाद के माल के उत्पादन के साथ साथ बेकारी का उत्पादन भी जोर शोर से बढ़ता है और दोनों के बीच मानों स्पर्द्धा चलती है। हजारों लाखों लोगों को बेकार कर कुछेक को रोजी रोटी देने वाले व्यवसाय या उद्योगों से राष्ट्र का हित होता है या अहित ? यदि अहित होता है तो राष्ट्र का अहित करने वाले ऐसे व्यवसाय, उद्योग कानूनी तौर पर चलाये भी जा सकते हैं या नहीं, इसकी पड़ताल कानून विशेषज्ञों को अवश्य करनी चाहिये । यंत्रयुग से पनपी औद्योगिक क्रांति पूंजी की तरह रोजगार को भी सेन्ट्रलाइज करती है। मीट प्रोड्यूसिंग इन्डस्ट्री इसका सटीक उदाहरण है। (इन्डस्ट्री) शब्द प्रयोग के प्रति पाठकों की आपत्ति स्वीकार्य है क्योंकि हमें भी आपत्ति है। डेढ़ सौ बिलकुल नई कमीजों को फाड़कर कोई यदि उनमें से पन्द्रह सौ पोंछने बनाकर बेचे और उसकी प्रवृत्ति को 'पोंछना प्रोड्यूसिंग इन्डस्ट्री' कहकर सराहा जाये तो सबसे पहले उसका विरोध यह लिखने वाला ही करेगा। माँस के उत्पादन की प्रवृत्ति ऐसी ही मूर्खतापूर्ण है। पशुनाश की प्रवृत्ति को 'मीट प्रोड्यूसिंग इन्डस्ट्री' ऐसा सन्दर नाम देने से वह उद्योग बन जाये यह बड़े आश्चर्य व अफसोस की बात है। माँस के उत्पादन से जुड़ा एक अद्यतन यांत्रिक बूचड़खाना कितने लोगों को बेरोजगार करता है, उसकी गिनती करनी हो तो कई क्लर्कों को काम में लगाना पड़ेगा। चलिये, कुछ गिनती हम ही करके देखते हैं। बहुचर्चित 'अल कबीर' बूचड़खाने का उदाहरण बात को समझने में उपयोगी होगा। अल- कबीर बूचड़खाने के संचालक अपनी परियोजना के समर्थन में कई दलीलें पेश करते हैं, जिनमें से एक यह है कि इस परियोजना द्वारा 300 लोगों को रोजगार मुहैया होगा। (कितनों को रोजी छीनकर ? इस बात को छुपा जाने वाले बूचड़खाने के मालिकों को लोगों की मूढ़ता पर कितना अडिग विश्वास होगा ! ) उनकी दूसरी दलीलें भी कितनी कमजोर होंगी इसका कुछ अन्दाज इस दलील से आ जायेगा। कितनों का रोजगार छीनकर 300 लोगों को रोजगार दिया जायेगा यह बात ग्रामीण क्षेत्र का किसान शहरी शिक्षित लोगों की अपेक्षा अधिक आसानी से समझ सकता है। इस बूचड़खाने में प्रतिदिन 500 भैंसे काटने की क्षमता है। उस हिसाब से यहाँ 1,82,400 भैंसे साल भर में कटती हैं। अब चूंकि एक भैंस एक साल में 5,409 किलो गोबर देती है तो इन भैंसों से 9.87 लाख टन गोबर मिलेगा। सूखने पर गोबर आधा हो जाये तो भी वह 4,935 लाख टन बनेगा। एक कंडा करीब एक किलो वजन का होता है तो इतने गोबर में 49.35 करोड़ कंडे बनेंगे। एक कंडा कम से कम 50 पैसे में बिके तो सब कंडों का मूल्य 24.68 करोड़ रुपये होगा। गांव में बड़ी संख्या में औरतें गोबर बटोरती हैं और उससे कंडे बनाकर उन्हें बेचती हैं। ग्रामीण महिला के गुजारे के लिये 500 रुपये माहवार पर्याप्त हैं, ऐसा मान लें, तो उसे हर महिने 1000, और सालभर में 12,000 कंडे बेचने पड़ेंगे। अर्थात् 49.35 करोड़ कंडों से 41, 125 औरतों को अपने गुजारे के लायक आमदनी होगी। इस प्रकार 500 भैंसों को प्रति दिन मारने वाला बूचड़खाना अर्हत् वचन, जुलाई 2000 69

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