Book Title: Arhat Vachan 2000 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 7
________________ अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर संपादकीय सामयिक सन्दर्भ आपकी प्रिय पत्रिका अर्हत् वचन का 47 वाँ पुष्प - वर्ष 12, अंक - 3, जुलाई - सितम्बर 2000 संभवत: जैन संतों की चातुर्मास तिथि आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी तदनुसार दिनांक 15 जुलाई 2000 के पूर्व ही आपके हाथों में पहुँच चुका होगा। इसका उद्देश्य यह है कि वर्षायोग के समय में जब आपके पास अपेक्षाकृत कम व्यस्तता हो तो आप इसे पढ़कर कुछ सकारात्मक निर्णय ले सकें। विद्वत्जन तो सदैव व्यस्त रहते हैं किन्तु उक्त कथन श्रावकों की अपेक्षा से है। हम यहाँ कतिपय सामयिक विषयों पर चर्चा कर रहे हैं। ऋषभदेव एवं जैन धर्म यह हमारा दुर्भाग्य रहा है कि इस बीसवीं शताब्दी में जैन धर्म के बारे में अनेक प्रकार की भ्रांतियाँ प्रचलित रहीं। जैन धर्म को हिन्दू धर्म की एक शाखा मानना या उसे मात्र एक उपासना पद्धति मानना ऐसी ही भ्रांति थी जिसे राष्ट्रसंत आचार्य श्री विद्यानन्दजी महाराज ने भगवान महावीर के 2500 वें निर्वाण महोत्सव को मनाने की प्रेरणा देकर दूर कराया। 2500 वें निर्वाण महोत्सव (1974) में जैन धर्म एवं भगवान महावीर का विश्वव्यापी प्रचार हुआ तथा जैन धर्म को हिन्दू धर्म से पृथक एक स्वतंत्र धर्म माना जाने लगा किन्तु साथ ही एक विसंगति भी कदाचित पुष्ट हो गई कि भगवान महावीर जैन धर्म के संस्थापक थे। भगवान महावीर के व्यापक प्रचार कारण जन-जन में यह भ्रांति विकसित हुई। देश की विभिन्न स्तरों की पाठ्यपुस्तकों में यह पढ़ाया जाने लगा कि भगवान महावीर जैन धर्म के संस्थापक थे। कुछ ने यह भी लिखा कि ब्राह्मण वर्ग के क्रियाकाण्डों तथा यज्ञों में होने वाली हिंसा के विरोध में जैन धर्म का उद्भव हुआ। जन-जन में फैलती जा रही इस भ्रांति के प्रति मन में व्यथा तो बहुतों को थी किन्तु परम पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने योजनाबद्ध तरीके से इस भ्रांति के निरसन का बीड़ा उठाया तथा कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर में अपने प्रवास के दौरान 12 मार्च 1996 को यहीं के प्रांगण में इस बात की घोषणा की कि जैन धर्म की प्राचीनता के प्रचार-प्रसार तथा भगवान ऋषभदेव के जनहितकारी संदेशों को विश्वव्यापी बनाने हेतु ऋषभ जयंती 1997 से ऋषभ जयंती 1998 तक जन्म जयंती महामहोत्सव मनाया जाना चाहिये। इस वर्ष में ऋषभदेव के संदर्भ में जन चेतना जाग्रत करने के अनेक कार्य हुए तथा बुद्धिजीवी वर्ग में ऋषभदेव विषयक चर्चाओं को गति देने हेतु तथा विश्वविद्यालयीन केन्द्रों पर ऋषभदेव एवं उनकी परम्परा के साहित्य के अध्ययन एवं अनुसंधान को गति देने के लिये भगवान ऋषभदेव राष्ट्रीय कुलपति सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें पारित जम्बूद्वीप घोषणा पत्र जैन समाज की एक विशिष्ट उपलब्धि है। इसकी सम्पूर्ण आख्या का प्रकाशन दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर द्वारा किया जा चुका है। इस कुलपति सम्मेलन में उपस्थित शताधिक विद्वानों एवं कुलपतियों की सर्वसम्मत अनुशंसा के आधार पर गठित तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ की स्थापना अर्हत् वचन, जुलाई 2000 5

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