Book Title: Anusandhan 2006 02 SrNo 35
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 14
________________ फेब्रुआरी - 2006 जिनेश्वरसूरि, जिनप्रबोधसूरि, जिनचन्द्रसूरि, जिनकुशलसूरि, जिनपद्मसूरि, जिनलब्धिसूरि, जिनचन्द्रसूरि, जिनोदयसूरि, जिनराजसूरि, जिनभद्रसूरि, जिनचन्द्रसूरि, जिनसमुद्रसूरि, जिनहंससूरि, और जिनमाणिक्यसूरि के नामोल्लेख सहित सद्गुरुओं को प्रणाम कर यह अद्भुत पत्र लखा गया है । ३. तीसरे चरण में गणनायक जिनचन्द्रसूरि के सद्गुणों और विशिष्ट कार्यकलापों का वर्णन करते हुए कवि कहता है - स्तम्भनपुर में बिराजमान ओकेशवंशीय, रीहड़कुलभूषण, श्रीवन्त शाह की धर्मपत्नी श्रिया देवी के यहाँ जन्म लेने वाले, श्रीजिनमाणिक्यसूरि के उपदेशों से प्रतिबोधित होकर बाल्यावस्था में दीक्षा ग्रहण करने वाले, जेसलमेर दुर्ग में आचार्य । गणनायक पद प्राप्त करने वाले (वि.सं. १६१२), विक्रमपुर (बीकानेर) में क्रियोद्धार करने वाले (वि.सं. १६१४), फलवद्धिपुर (मेड़तारोड) में महामन्त्रों की शक्ति से प्रभुमन्दिर के तालों का उद्घाटन करने वाले, दिल्ली में शत्रुओं का उच्चाटन करने वाले, योगिनियों की साधना करने वाले, सूरिमन्त्र की आराधना करने वाले, गुर्जर देश में तपागच्छीय विद्वान् द्वारा निर्मित पुस्तिका के विवाद पर शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त करने वाले, लाभपुर में सम्राट अकबर को प्रतिबोध देकर शाही मुद्रा से अङ्ग, कलिङ्ग, प्रयाग, चित्रकूट, मेदपाट, सिन्धु सौवीर, काश्मीर, जालन्धर, गुजरात, मालव, काबुल, पंजाब आदि प्रदेशों में अमारी घोषणा का पालन करने वाले, युगप्रधान पद धारण करने वाले, खम्भात की खाड़ी के समस्त जलचरों को अभय दान दिलवाने वाले, पंजाब की पंच नदियों के संगम पर पांचों पीरों को अपने अधीन करने वाले महावैराग्यवान भट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरिजी हैं । चतुर्थ चरण में स्तम्भतीर्थ नगर और मन्दिर का सालङ्कारिक सुललित पदों द्वारा वर्णन कर वहाँ विराजमान युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के साथ निम्न विद्वान् साधु वर्ग था - उपाध्याय जयप्रमोद, श्रीसुन्दर, रत्नसुन्दर, धर्मसिन्धुर, हर्षवल्लभ, साधुवल्लभ, पुण्यप्रधान, स्वर्णलाभ, नेतृऋषि, जीवर्षि, भीम आदि साधु-साध्वियों के समूह से सुशोभित हो रहे थे ।। मेदिनीतट (मेडता) से यह पत्र समयसुन्दरजी ने लिखा था। उनके साथ में उस समय में १२ साधु थे - हर्षनन्दन, रत्नलाभ, मुनिवर्धन; मेघ, रेखा, राजसी, खीमसी, गंगदास, गणपति, मुनिसुन्दर, मेघजी आदि थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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