Book Title: Anusandhan 2006 02 SrNo 35
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 85
________________ 18 अनुसन्धान ३५ जे पोते बोटादना ज हता अने आचार्यश्रीना बोटाद-निवास वखते उपस्थित हता, तेमनी जाणमां पण आवी कोई घटना बनी होवानुं जाण्युं नथी. एक महत्त्वनी वात ए छे के नेमिविजयजी स्वयं आ प्रकारना यौगिक चमत्कारो करी शके तेवी विभूति हता. महम्मद छेल नामना जादुगरे साधु-संतोने हेरान करवा मांड्या त्यारे तेमणे ते जादुगरने, बोटादमां ज, यौगिक शक्तिनो परचो बताडी, हवे पछी कोई पण धर्म-सम्प्रदायना साधुसंतोने न रंजाडवा तेनी पासे वचन लीधेलुं. परन्तु, ते पोते वीतरागना मार्गना उपासक वीतरागी-वैरागी जैन साधु हता. पोताना भक्तवर्गनी तथा मतनी वृद्धि काजे पोतानी यौगिक शक्तिनो विनियोग करे तेवी निम्न कक्षाना तेओ नहोता. हा, कोई जैन, मात्र परचाओथी खेंचाई जईने जैन धर्म तजी अन्य पन्थमां जतो होय तो, तेने बोलावीने तेमणे समजाववानी महेनत जरूर करी होय; अने ते तो कोई पण धर्माचार्य करे; परन्तु तेमणे नगरशेठने संताप्या, अने पछी अन्य स्वामीना आवा खोफना पोते भोग बन्या - ए वगेरे वातो तो मात्र कल्पना शक्तिनी नीपज छे - नरी अवास्तविक ! सार ए ज के साम्प्रदायिक व्यवहार-व्यवसायनी दृष्टिए आवी काल्पनिक वार्ताओ बनाववी पडी होय, तो पण, वर्तमानना उदार, समन्वयवादी तथा सहिष्णु काळमां तेवी वातोनो आ रीते प्रचार कर्या करवो, ते सम्प्रदायनी बाह्य उन्नतिनी तुलनामां भीतरी दृष्टिनो विकास के उघाड बहु ओछो थयो होवानी दहेशत ज रे तेम छे. शी० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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