Book Title: Anusandhan 2006 02 SrNo 35
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 96
________________ फेब्रुआरी - 2006 89 'जातिविवृति' नामक रचना न्यायदर्शनना एक ग्रन्थ पर जैन मुनि द्वारा रचायेलु टिप्पण छे. साहित्यक्षेत्रे जैन श्रमणोनी उदार चेतनानी परिचायक आ एक वधु कृति बहार आवी. जेनी पासे तर्ककर्कश मेधा होय अने तेने पण वधु तीक्ष्ण बनाववी होय तेमना कामनी आ रचना छे. प्रशस्तिना बीजा श्लोकमां कहेवायुं छे : “सांप्रतकाळे पृथ्वीतट पर गुरुगुणो थकी जे श्री गौतमस्वामी जेवा बनी रह्या छे अने जेमनी तुलना सेनशिष्यविजय नामना सूरि साथे ज करी शकाय एवा. श्री हीरसूरि..." विजयसेनसूरिनो ज उल्लेख छे ए स्वयंस्पष्ट छे. कर्ता 'सेनशिष्यविजय' एवो विचित्र प्रयोग करे नहि ए पण देखीतुं छे. 'शिष्यसेनविजयाह्नः' होवू जोइए अने तेम करवामां छन्दोभंग पण नथी. सेनशिष्यविजया० एवो पाठ लिपिकारनी सरतचूकथी आव्यो होय ए ज एक शक्यता छे. सम्पादके आ पाठ अंगे कशें जणाव्युं नथी.. 'भुवनसुन्दरी कथा' ग्रन्थमा छपायेल तेना सम्पादकश्रीनो अभ्यासलेख आ अंकमां प्रगट करवामां आव्यो छे ते आवकार्य छे. मारी ज वात करूं तो प्रस्तुत ग्रन्थ मारा हाथमां आवी चूक्यो छे छतां समयाभावे तेनुं अवलोकन हुं करी शक्यो नथी. अनु०मां आ अभ्यासलेख वांचवाथी ग्रन्थनी विशिष्टताओनो ख्याल आव्यो. . लेखमां संकलित बिन्दुओर्नु समग्रतया परिशीलन करतां मनःकामनापूर्ति माटे नमस्कार मन्त्रनो उपयोग, देवी-देवताओनी उपासना वगेरे वस्तुओ धार्मिक शिथिलताना युग तरफ इंगित करे छे. ग्रन्थमां वपरायेला दद्दर (दादरो), .भरवसो (भरोसो), पिंडारा (पिंढारा) जेवा शब्दो अने 'करमेधरमे', 'साप मरे नहि अने लाकडी भांगे नहि' जेवा रूढिप्रयोगो तो प्राचीन गुजराती अथवा अपभ्रंशना प्रभावनुं सूचन करे छे. कापालिक सम्प्रदायनो अने तेमना क्रियाकाण्डनो वारंवार थतो उल्लेख ग्रन्थकर्ताना तद्विषयक व्यक्तिगत रस अने कदाच अनुभवने सूचित करे छे. आ वात कर्ताना यतिजीवननी सम्भावना दर्शावे छे. यद्यपि आ बधुं अभ्यासलेखमां चर्चित विगतोना परिप्रेक्ष्यमां लख्युं छे. कृतिनुं सर्वांगीण अध्ययन थq बाकी ज छे. आ प्रकारना ग्रन्थोना अध्ययनथी संघ-समाजना इतिहासनी अस्पष्ट रहेती रेखाओ स्पष्ट थवामां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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