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फेब्रुआरी - 2006
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शुद्धिवृद्धि म. विनयसागर द्वारा सम्पादित वर्द्धमानाक्षरा चतुर्विंशति-जिनस्तुतिः (अनु. ३४) नी टिप्पणीमां छापवो रही गयेलो अंशः (पृ. २१, टि.क्र. १९ अने ते पछी उमेरो)
१९. एकोनविंशत्यक्षर छन्दका नाम है - मेघविस्फूर्जिता । लक्षण है - |ऽऽ, ऽऽऽ, III, IIS, SIS, SIS, 5, यगण, मगण, नगण, सगण, रगण, रगण, गुरु ।
२०. विंशत्यक्षर छन्द का नाम है - शोभा । लक्षण है – ।ऽऽ, ऽऽऽ, Ill, III, 551, 551, 5,5-यगण, मगण, नगण, नगण, तगण, तगण, गुरु, गुरु ।
(अनु. ३४, पृ. ३५, पं. ६) अशुद्ध संवत् १७५
संवत् ९७५ पृ. ३८, पं. १५ किया की है
किया ही है
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