Book Title: Anusandhan 2006 02 SrNo 35
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 91
________________ 84 अनुसन्धान ३५ अनेक विधिविधानोनुं विशद प्रतिपादन थयुं छे, जेथी आ ग्रन्थ श्वेताम्बर संघमां बहुमान्य ग्रन्थ बन्यो छे. श्रीजिनप्रभसूरिजी खरतरगच्छना गच्छपति हता, अने सम्पादक साध्वीश्री पण ते ज गच्छनां छे, एटले स्वाभाविक रीते ज ग्रन्थकारना जीवन-कवननो विस्तृत आलेख, आरम्भनां पृष्ठोमां अपायेल छे. परन्तु जिनप्रभाचार्यनो तपगच्छपति श्रीसोमप्रभाचार्य प्रत्ये बहुज प्रेम अने आदरभर्यो गुणानुराग-सम्बन्ध हतो, तथा तेमणे सोमप्रभाचार्यना अनुपम गुणोथी आकर्षाईने पोतानो स्तोत्रसंग्रह तेमने अर्पण करेलो, ते ऐतिहासिक तेमज पारस्परिक सद्भावने वधारनारी घटनानो उल्लेख सुद्धा करवानुं सम्पादिकाए केम टाळ्यु हशे, ते न समजाय तेवू छे. परम्पराप्राप्त गच्छवादी मानस अने अन्य गच्छ प्रत्येनी अरुचि आमां कारण होय ए तो बराबर छे, परन्तु ते कारणे जिनप्रभाचार्य जेवा उदार अने गुणानुरागी पुरुषने अन्याय थई जाय छे, ते मुद्दो केम नजरअंदाज थाय ? बीजी वातः प्रायश्चित्तविधिना प्रकरणनो हिन्दी अनुवाद जे आमां छाप्यो छे ते, केटलाक प्रवर्तमान संयोगो प्रति दृष्टिपात करतां, ओछु उचित लागे छे. एटलो भाग अनुवाद वगरनो ज मूलमात्र छपायो होत तो वधु उचित थात. अभ्यास अने अनुवाद भले थाय, पण जेटलुं लखाय ते बधुं ज छपाववानो आग्रह, ओछामां ओछु साधुपदधारी माटे तो, वाजबी नथी लागतो. ___बाकी एकंदरे सुन्दर अनुवादः सरस प्रकाशन : साध्वीशक्तिनो सरस विनियोग करवामां आवे तो आवां उत्तम ग्रन्थरत्नो समाजने मळे. (३) आचाराङ्गसूत्र-बालावबोध (प्रथम श्रुतस्कन्ध), कर्ता : श्रीपार्श्वचन्द्रसूरि; सं. उपाध्याय भुवनचन्द्र तथा अमृत पटेल; प्र. श्रीपार्श्वचन्द्रसूरि साहित्य प्रकाशन समिति, नानी खाखर (कच्छ); ई. २००५. श्रीपार्श्वचन्द्रगच्छ प्रवर्तक आचार्य श्रीपार्श्वचन्द्रसूरि (सत्तासमय - सं. १५३७-१६१२) ए विविध जैनागमो उपर बालावबोधनी रचना करी छे. आगमोनुं अध्यय करवाना जिज्ञासुओ, जेमने माटे संस्कृत दुर्बोध होय अने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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