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अनुसन्धान ३५
सहज परणत भई परगट किम होहि करम कदंबरो अनाहि वस्तु सहाइ परणवें जांणि जियडे संबरो ॥१९॥
दोहा ॥ पयोगी अपने पयोगसौं त्यारे जांणत भोग ।। यापें देखन सकति हे ताकी धारण योग ॥२०॥ यह योग की रीति हे मलि मलि करे संयोग । तासौं निरजरा कहत हें बिछुरे होय वियोग ॥२१॥
छन्द ॥ निज्जरा तासकी हो कम्मह तणा संयोग थिति पूरी भइ हो लागें होत वियोग होत वियोग तस कौन राखें गवन दहदिशि धावहि पिछलें निवास होय ॲसो आगें अउर न आवहि यह सकल पुदगल-दरबकेरी मिलन बिछरन आसकी ज्ञानदृष्टि धरे देखि चेतन होय निज्जरा तासकी ।।२२।।
दोहा ॥ सकल दरब त्रिलोकमें मुनि कि पटंतर दीन जोग जुगति कर थप्पिया निश्चय भाव धरीन ॥२३।।
छन्द ॥ तिनुं लोक एहो ही परमकुटि सुखवास मुनि जोग दीयें हो सिद्ध निरंजन भास सिद्ध निरंजन भास तिनकों सहज लीला किजीइं तिस कुंटिमाहि जु भावधारा बाहिर पर जें न दीजीइं किस गुरु नांहि कोइ चेला रहें सदा उदासओ आलोक मध्य जु कुरी रचना तीन लोक सुखवासओ ॥२४।।
दोहा ॥ धर्म करो बे धर्म करो किरिया धर्म न होय धर्म तु जांणण वस्तु हे ग्यांनदृष्टि धरि जोय ॥२५॥ करण करावण ग्यान नांहि पढण अरथ नहि ओर ग्यांन दिढे नहि उपजें मोहातनि झकोर ॥२६।।
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