Book Title: Anusandhan 2006 02 SrNo 35
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ 62 अनुसन्धान ३५ जोतीरूप अरूपी अरित, त्रिभुवन जन भूपो; अजरामर अविनासी कोई न लहै रूपो..... ज० ३ अंतरजामी हो तुम नह चै जानत सब घटकी; कलपद्रुम तुम सरिखा पूरत सब मनकी..... जै० ४ सयंभूरमण बिंदु जलकेरों संख्या लहैं कोई; तुम गुण केरो नाथ पावत नही कोई..... ज० ५ उत्तम वस्त्र पहर आभूषण इंद्रादिक आई; थेई थेई नाचत हरखित बहुत भगती लाई..... ज० ६ धपमप धपमप मादल बाजै भौकारें; गुड गुड झांकट झांकट नोबत सुरभारें..... जै० ७ रतन जडत लेई आरति करपूर संयुगती आरती कर कहै एम आपो मुझ ___ मुगती..... जै० ८ करें केवल महिमा सुरपति पोहपन(?) वरषाई; आविध स्तुति करें बहु भगते मेघा सिर नाई ..... जै० ९ ॥ इति आरती संपूर्णं ॥ ॥ सुमरो जिनराज सुमतिदाता सुमतिदाता रे कुमतित्राता सु०; नरसुर सिवपद लछि लहो रे, ओर लहो रे तुम सुखसाता. सु० ..... भवसायरमें डुंबत राखें, रास लेवें रे कुगति जाता. सु० .....२ आंगण उभी तुरीयां रे हीसें; हसती ही दरे थारें मदमाता. सु० तीनलोकनो साहिब त्यागी क्यों रे फिरो प्रानी ध्याता. आमनी होंस कबु नही भांजें आमलीयांना रे फल खाता. सु० मानदत्त आपन भल चाहो अहोनिस रहो जिनगुण गाता. सु० ..... ॥ इति सुमतनाथ गीतं ॥ wm3 ॥ मेघकुमारना गीतमें देशी ॥ वीर जिणंद वखाणियोजी, पूजानो अधिकार; गोयम आदि देई करीजी, बारह परषदा सार रे... प्राणी; पूजो श्री जिनराज ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98