Book Title: Anusandhan 2006 02 SrNo 35
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 80
________________ फेब्रुआरी - 2006 भूकश्यप वंश में होने के कारण सूर्य के समान प्रतापी वासुदेव को विशेष्य मानकर अन्य विशेषण ग्रहण करने से पद्यार्थ निष्पन्न होता है । गर्भापहार जैसी घटना भी अन्य चरित्रों के साथ सहज भाव से वर्णित है : देवावतारं हरिणेक्षितं प्राग, द्राग् नैगमेषी नृपधाम नीत्वा । तं स्वादिवृद्ध्या शुभवर्द्धमानं, सुरोप्यनंसीदपहृत्य मानम् ॥१-४९॥ इन्द्र ने पहिले दिव्यांश से पूर्ण अवतीर्ण महापुरुषों को देखा और नैगमेषी नामक देव ने शीघ्र नृपधाम नीत्वा राजाओं के घरों में आकर धनादि की वृद्धि की । प्रारम्भ से ही ज्ञानादि गुणों से पूर्ण महापुरुषों को देखकर, मान को त्याग कर सुरों ने भी नमस्कार किया । महावीर के पक्ष में - नृपधाम नीत्वा ऋषभदत्त के घर से सिद्धार्थ के घर में रखकर, धन-धान्यादि की वृद्धि कर नैगमेषी ने मान त्याग कर, वर्द्धमान संज्ञक ज्ञानादिगुण पूर्ण तीर्थंकर को नमस्कार किया । सातों ही नायकों की जन्मतिथि का वर्णन भी कविने एक ही पद्य में बड़ी सफलता के साथ किया हैं : ज्येष्ठेऽसिते विश्वहिते सुचैत्रे, वसुप्रमे शुद्धनभोर्थमेये । साङ्के दशाहे दिवसे सपौषे, जनिर्जितस्याऽजनि वातदोषे ॥२-१६॥ दोष रहित शांतिनाथ का ज्येष्ठ कृष्ण विश्वहित त्रयोदशी को, ऋषभनाथ का वसुप्रमे चैत्रकृष्ण ८ को, नेमिनाथ का शुद्धनभोऽर्थमेये श्रावण पंचमी को, पार्श्वनाथ का पोषे दशाहे, पौष दशमी को, महावीर का चैत्रेऽसिते विश्वहिते चैत्रशुक्ला त्रयोदशी को, रामचन्द्र का चैत्रेसिते सांके चैत्र शुक्ला नवमी को और कृष्ण का असिते वसुप्रमे भाद्रकृष्णा अष्टमी को, रागादि विजेताओं का जन्म हुआ । अनेकार्थ और श्लेषार्थ प्रभावित अत्यन्त कठिन रचना को भी कविने अपने प्रगाढ पाण्डित्य से सुललित और पठनीय बना दिया है । इस मूल ग्रन्थ का प्रथम संस्करण (स्वर्गीय न्यायतीर्थ व्याकरणतीर्थ पण्डित हरगोविन्ददासजी ने सम्पादन कर) जैन विविध साहित्य शास्त्रमाला, वाराणसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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