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अनुसन्धान ३५
से सन् १९१७ में प्रकाशित हुआ था । इस कठिनतम काव्य पर टीका का प्रणयन भी सहज नहीं था किन्तु आचार्य श्री विजयअमृतसूरिजी ने सरणी टीका लिखकर इसको सरस ओर पठन योग्य बना दिया है । यह टीका ग्रन्थ जैन साहित्य वर्धक सभा सूरत से वि.सं. २००० में प्रकाशित हुआ था । पाठक इस टीका के माध्यम से कवि के हार्द तक पहुँचने में सफल होंगे ।
C/o. प्राकृत भारती १३-A. मेन मालवीयनगर,
जयपुर
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