Book Title: Anusandhan 2006 02 SrNo 35
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
61
फेब्रुआरी - 2006 इम जाणी रे भवि नरनारीयां, पालो दृढ मन लाय; सरूप सुगुरनो रे शिख इम आखवें, मान पूजा शिव पाय..... ८. शी०
इति शील स्वाध्याय ॥
(३)
॥ देशी गरभाकी ॥ इक दिन अरणक जाम, गोचरी उठीया रे, खरी दुपहरीमांहि, मुकतिनो रसीयो
रे.... १ . अद्भुत काम सरूप, जोबन वेसे रे; उभो गोखने हेठ, दीठो वेसें रे..... २ दासी येक बुलाय, इण पर बोलें रे; तेडी लावो ए साधु, नही इण तोलें
आई दासी रे ताम इण पर भाखें रे, आम पधारो राज, पुरो अविलायें
रे..... ४ दासी वचन रसाल सुणकर हाल्या रे; तसलीम करी कहै नारि आवो मन
वाल्हा रे..... ५ या चत्रसालीमांहि भोगो भोगा रे; जोबन लाहो लेह, लीजो जोगा रे..... ६ कोमल तन सुकमाल देखी चूक्यो रे; मण वसे मुनिराय संजम मूक्यो रे...७ इक दिवसनें योग गोखां बयठे रे; चोपड रमतां मात देखें हे रे..... ८ गलीयां गलीयां माहि फिरें जोती रे; दीठो कोई माहरो नंद अरणकमोती
रे..... ९ उतरि चिंतव जाम ध्रगध्रग मुझनें रे; क्षिमा करो मुझ माय विनवू तुझनें
रे..... १० अणसण नोका बैठ भवदधि तरिया रे; मेंघा सिवपुर जाय रमणी वरिया
रे..... ११ इति अरणक सिज्झाय ॥
(४)
॥ आरती ॥ जय जय जिनदेवा ज०; सुरनर करें तुम सेवा, पावें नही मेवा अष्टमहाप्रतिहारज, अतिसय गुणधारी; दोषरहित प्रभु राजै लबधि गुणें भारी....
जै० २
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98