Book Title: Anusandhan 2006 02 SrNo 35
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 52
________________ फेब्रुआरी - 2006 षट पंचाशत लख इग कोटी पद यजो इभ८ द्रव्य धारी ॥ म० ||५|| निद्धि उधयकर चारित्रनंदी परमानंद थयो भारी || म०॥६॥ काव्यं ॥ प्राणायामस्त्रिकं वा सनखचरमितं ध्यानवेदप्रमाणं । प्रत्याहाराम्बुराशि ग्रहयमनियमौ धारणेषु प्रमाणं । यँ एँ वँ मेँ तथा लोँ पवनमदनगं तत्त्वभावस्वरूपं । प्राणावायाख्यपूर्वं ललितपदचयं द्रव्यनांगैर्य जामि ॥१॥ ह्रीं० प्रणावाय पूर्वं० ॥ इति प्राणावायपूर्वार्चनम् ॥२॥१२॥१२॥२४॥ दोहा ॥ प्रणमो पूरव तेरमो अनुपम किरिया विशाल । अष्ट द्रव्य कर पूजतां पामें गुणमणि माल ॥१॥ ढाल ॥ राग मालवी गवडी ॥ सर्व करमदलन जिनेंद्र प्रवचन भावो हृदय मझार रे ॥ साधो ॥ 45 भा० ॥टेका द्वादशांगी श्रुति अभ्यंतर क्रियाविशाल पूरव धार रे || सा०||१|| स०॥ भाखियो जिन समवसरणें किरिया तणो अधिकार रे ॥ सा० ॥ नख दश वस्तू भाव अद्भुत पद ग्रह कोटि सुसार रे ॥ सा०||२|| स०॥ अष्ट द्रव्यें भाव धरकै पूज रचो तिहुं काल रे |स०|| निध्युदय चारित्रनंदे लाधो सुख सुविशाल रे ॥ सा०||३||स० ॥ काव्यं ॥ साध्वाचारक्रियायाश्चरणकरणयोः सततेः सूचितं च । संसारादिक्रियापि प्रवचनजननीभावनादिप्रवृत्ति । शास्त्रास्त्रस्वर्णरत्नप्रमुखनिधिगृहं सक्रियाम्भोनिधि च ज्ञेयं ज्ञात्वा सुयोगैर्निजपदविधिलाभाय संस्तौमि भक्त्या ॥१॥ ह्रीं० ॥ क्रियाविशालपूर्वं ॥ इति क्रियाविशालपूर्वार्चनम् ॥२॥१२॥२५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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