Book Title: Anusandhan 2006 02 SrNo 35
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 61
________________ 54 अनुसन्धान ३५ तेनी जेरोक्स नकल उपाध्याय श्री भुवनचन्द्र महाराज द्वारा प्राप्त थई छे, अने तेना परथी पूज्य आचार्यश्रीना निर्देश अनुसार आ सम्पादन करेल छे. दोधक बावनी श्री पार्श्वनाथजी शत्य छे । अथ दोधक बावनी लिख्यतें । ॐ यह अक्षर शार हे एसा अवर न कोई । शिवसरूप भगवान शिव शिरसां वंदु शोय ॥१॥ नमीइं देंव जगतगुरुं नमीइं सदगुरुं पाय दया युक्त नमीइं धरम शिवगती लेह उपाय ॥२॥ मनथे ममता दुर कर समता धर चितमांहिं रमताराम पिछानकें सिवसुंख लें क्युं नाहि ॥३॥ सिवमंदिरकी चाह धर अथिर मंदिर तजि दुर लंपट रह्यो क्या किचमे असुंच जिहा भरपुर ॥४॥ द्वंधा ही मे पच रह्यो आरंभ किए अपार उठि चलेगो एकलो शिर पर रहेंगो भार ॥५॥ अन्यायाजि(र्जि)त दत्त धन बहुतर हि फल सोइ दांन स्वल्प फुनि फल बहुल, न्यायोपार्जित होइ ॥६॥ आतम पर हित आपकुं क्या परकुं उपदेश निज आतम समझ्यो नहि किनो बहुंत किलेश ॥७॥ इतना ही मे शमझ तुं बहुत पढे क्या ग्रंथ उपशम विवेक शंवर लहो याथे शिवपुर पंथ ॥८॥ इतीभीती याथे गइ प्रगट भई सुंभ रीत नीतमार्ग पेदा कियो गाउं ताके गीत ॥९॥ उदय भए रविके जशा जाए सयल अंधार त्यौ सदगुरु के वचन थें मिटे मिथ्यात अपार ॥१०॥ उगत बीज सुं खेतमें जशा सुं जल शंजोग त्यौ सदगुरु के वचन थे उपजत बोधपयोग ॥११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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