Book Title: Anusandhan 2006 02 SrNo 35
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ फेब्रुआरी- 2006 (६) राग केदारो ॥ जाकी रख्या (क्षा) करे एक भगवंतजी, ताकुं संसारमें को न भीता चरण भगवंतनो सरण ग्रहे साधवा, भर्म भीता तणी टाल चंता, जा० ॥१॥ राय रुठे थकें देख सुदरसण, सुलीका अग्न उपाडि दीधो भक्त भगवंतसानीध कीधा सही, सुली संघासण तथ कीधो, जा० ॥२॥ संखराजातणें भ्रांत मन उपनी, कंकणा देखनें हाथ च्छेदा सतीय कमलातणी सानिधें श्रीप्रभु, फेरी नवपलव हाथ कीधा, जा० ॥३॥ साधनी भक्तमें लंछन उपनो, नगर चंपातणां द्वार रुध्यां गेबवांणी सुणी चारणी तांतणें, नीर काढी करी छांट दीधा, जा० ॥४॥ सांइ साखी करी प्रोल तीहां उघडी, सतीय सुभद्रातणी मांम राखी नाथ मुनीचंद्र प्रभु ध्यांनघर साधवा, एक भगवंत हे सरण, साखी जा० ॥५॥ इतिश्रीः ॥ (७) राग देसा ॥ देवल एसा देख लें जामें पंचही देवा । ब्रह्मा विष्णु महेश्वरा भगवंत अभेवा, दे० ॥१॥ तीन सगुन में देव हैं, देवीयुग तस माई । एक निरंजन देव हें, गुण पार बताई दे० ||२|| पूजा करो नीत जाहकी प्रह उगत सूरा । तिन दकार त्रवेणीयां नाहो निरमल नीरा, दे० ॥३॥ नीर विवेक पखालीए सुरति फूल चढावो । ग्यानको दी| पसंयोजके भावतवनाकुं गायो, दे० ॥४॥ तामेही एक नीरंजना भगवंत केलावें । सेवा जाकी कीजीए चरणे चीत लाई, दे० ॥५॥ सोई सदा तुम पूजजो गुण नीरगुण आसें । मुनीचंद्रनाथ देखावहें पूजा मांनसी पासें, दे० ॥६॥ इति पदं ॥ Jain Education International 29 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98