Book Title: Anusandhan 2006 02 SrNo 35
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
27
फेब्रुआरी - 2006
(४) श्रीजिनशासन पूजीए पुजो देव जिणंदा आतमशक्त आराधीए गुरु वाणी भणंदा । भाव अंतरगत भावना निज भाव विचारो आतम चैतन आपणो सुध ज्ञान संभारो ॥१॥ परपंच पुदगल पार छे पांच द्रव्यनें पारे चैतन द्रव्य , सास्वतो जीवद्रव्य अपार । आतम खंध प्रदेशमां आयु अध्यवसाया भौम प्रणामी भावीए निज भौमनें गाया ॥२॥ माहाविदेही भौममें सुध भौम विहार विजय विदेही भावना निज पर ज अपार ।। आपा पर चैतनसता निज धर्म संभारे विहरमांन जिन वंदीए माहाविदेह मझार ॥३॥ जिन दरसन नित कीजीए भावो आतम भावें
आगम पूजा तिहां करो बधदेव भणावे । तिरथ च्यारे भावना जिनधर्म आराधो भवि जिनधर्म रुचावीइं जिनशासन लाधो ॥४॥ जय जयवंती भावना प्रभु अंतर भावो जय नंदा जय वांणमां जेजेवंती गावो । जेवंती जेजे करी जय सासणराया आतम भगवती जेवंती गुरु केवल गाया ॥५॥ श्रीभगवंतने ध्याईए पुरसोतम राया परिब्रह्म पार जिणेसरा सिध बुध कहाया । अगम अगाध आराधीए सिध देव जिणंदा श्रीसिधवंती साश्वति जयवंति जिणंदा ॥६॥ आगम धर्म आराहणा ध्रुव अवचल ध्यावो जोति झलामल भावना निज आतम गावो ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98