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फेब्रुआरी - 2006
(४) श्रीजिनशासन पूजीए पुजो देव जिणंदा आतमशक्त आराधीए गुरु वाणी भणंदा । भाव अंतरगत भावना निज भाव विचारो आतम चैतन आपणो सुध ज्ञान संभारो ॥१॥ परपंच पुदगल पार छे पांच द्रव्यनें पारे चैतन द्रव्य , सास्वतो जीवद्रव्य अपार । आतम खंध प्रदेशमां आयु अध्यवसाया भौम प्रणामी भावीए निज भौमनें गाया ॥२॥ माहाविदेही भौममें सुध भौम विहार विजय विदेही भावना निज पर ज अपार ।। आपा पर चैतनसता निज धर्म संभारे विहरमांन जिन वंदीए माहाविदेह मझार ॥३॥ जिन दरसन नित कीजीए भावो आतम भावें
आगम पूजा तिहां करो बधदेव भणावे । तिरथ च्यारे भावना जिनधर्म आराधो भवि जिनधर्म रुचावीइं जिनशासन लाधो ॥४॥ जय जयवंती भावना प्रभु अंतर भावो जय नंदा जय वांणमां जेजेवंती गावो । जेवंती जेजे करी जय सासणराया आतम भगवती जेवंती गुरु केवल गाया ॥५॥ श्रीभगवंतने ध्याईए पुरसोतम राया परिब्रह्म पार जिणेसरा सिध बुध कहाया । अगम अगाध आराधीए सिध देव जिणंदा श्रीसिधवंती साश्वति जयवंति जिणंदा ॥६॥ आगम धर्म आराहणा ध्रुव अवचल ध्यावो जोति झलामल भावना निज आतम गावो ।
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