SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसन्धान ३५ धर्मदत्ता बुध सामीया निजधर्म जगंदा मुनीचंद्रनाथजी सामीया जय पर्म आणंदा ॥७॥ इति श्रीधर्मदत्तदेवप्रकासिते निजआराधभावना भासवांणी ॥ देव निरंजननें आराहो रे, श्रीभगवंत ध्यान में ध्यायो रे । परीब्रह्म पुराण पूरुष कहीजे रे, अलख निरंजन ध्यान धरीजे रे ॥१॥ जलहल ज्योतिमें ज्योति विराजे रे, सत्य चिदानंद पुरण छाजे रे । अगम अगाध में नीगम कहीजे रे, ध्येयधणी जगदीश लहीजें रे ॥२॥ अलख अगोचर आप कहीजे रे, परीब्रह्म नीगमनो वेद भणीजे रे । शिवपद सासण सिध कलांण रे, नाम नारायण ज्योति वखांण रे ॥३॥ श्रीबधदेव छे केवलसामी रे, पंच परीब्रह्म छे बहनांमी रे । सिध भगवंत , सास्वतराया रे, निज जिनदेव प्रभुजी कहाया रे ॥४॥ पर्म अगोचर पारने पार रे, सिध भगवंत अनादि अपारे रे । श्रीबुध सासण साश्वत सिधो रे, सतर कलायुग आदि प्रसीधो रे ॥५॥ अक्षरातीत ने पार छे पार रे, निगम माहा तिहां वेद विचार रे । निजपदभेद अगम बुधराया रे, श्रीमाहाराज्य महासिधराया रे ॥६॥ धर्म अखंडीत छे जिहां साचो रे, केवल प्रेम माहारश राचो रे । जोति झलामल जलहर(ल) दीपे रे, त्रिगढ संघासण नाथजी ओपे रे ॥७|| पीर परम निज पारनो गायो रे, श्रीसीध मंडल ज्योति में गायो रे । परम अगोचर श्रीबुधराया रे, धर्मधुरंधर नाथ कहाया रे ॥८॥ नव रससामीनी सेवा कीजे रे, अगम आराहण ध्यान धरीजे रे । मुनीचंद्रनाथजी जगगुरु राया रे, धर्मदत्ता गुरु अविचल गाया रे ॥९॥ इति श्री धर्मदत्तदेवप्रकासिके माहापर्मपदसिध आराधना भासवांणी संपूर्णः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520535
Book TitleAnusandhan 2006 02 SrNo 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy