Book Title: Anekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04 Author(s): Jaikumar Jain Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 8
________________ in a ll आचार्य मोक्षमार्ग में वन्द्य और अवन्ध एक चिन्तन - डॉ. श्रेयांसकुमार जैन भारतीय दार्शनिक परम्परा में मोक्ष सर्वमान्य तत्त्व है। इसके प्राप्ति के उपायों में वैमत्य है, किन्तु जैनाचार्य सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र को ही मोक्ष का मार्ग-उपाय कहते हैं। ये सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र रत्नत्रय हैं। जो इनको धारण करता है वह मोक्षमार्गी है। आचार्य कुन्दकुन्द मार्ग और मार्गी का अभेद करके मार्गी को ही मार्ग रूप में स्वीकार करते हैंणिच्चेलपाणिपत्तं उवइटुं परमजिणवरिदेहि। एक्को वि मोक्खमग्गो सेसा य अमग्गया सव्वे ।।10। सूत्रपाहुड वस्त्र मात्र का त्याग कर दिगम्बर मुद्रा धारण करना और दिन में एक बार खडे होकर हाथ में भोजन करना ही जिनेन्द्र भगवान् ने मोक्षमार्ग कहा है, शेष मुद्रा अमार्ग हैं, मोक्षमार्ग नहीं है। __ ऐसा ही और भी कहा है। आचार्य समन्तभद्रस्वामी ने मुख्यतः तो मुनि को ही मोक्षमार्गी मुमुक्षु कहा है। गृहस्थ को भी मोक्षमार्गस्थ स्वीकार किया है। इसीलिए पंडित दौलतराम ने मोक्षमार्गी को उत्तम, मध्यम और जघन्य के भेद से तीन प्रकार से वर्णित किये हैं।' ___मोक्षमार्ग में आचार्य कुन्दकुन्द ने प्रथम लिंग जिनरूप (दिगम्बर मुनि), द्वितीय उत्कृष्ट श्रावक और तीसरा लिंग आर्यिकाओं का कहा है। इन्ही की वन्दना विधि पर विचार किया है। वन्दना विधि के अन्तर्गत विनय वाचक णमोत्थु, णमो, वंदेमि, वंदामि, इच्छायार, 'प्राकृत शब्द तथा नमोस्तु, नमः, नमामि, वंदामि, वन्दन, इच्छामि, इच्छाकार आदि संस्कृत शब्दों का प्रयोग सर्वत्र मिलता है। आचार्य कुन्दकुन्दPage Navigation
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