Book Title: Anathimuni Charitram
Author(s): Nagchandrajitswami
Publisher: Virchand Lalchand Shah

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Page 8
________________ अनायिमुनि विषयी पदार्थो साथेनी अथडामणमाथी मनुष्यने उगारी ले छे, एटलुज नहि पण सरल अने उन्नतिप्रद होर आदर्श तरीके गणाय छे. अनुभव आ सत्यनी सचोट साक्षी पूरे छे. कषुछ केआपदा कथितः पन्था, इन्द्रियाणादसंयमः। तज्जयः संपदा मार्गो, येनेष्टं तेन गम्यताम् ॥१॥ अर्थात् इन्द्रियोने निरंकुश छूटी मूकी देवामां दुःखनोज अनुभव करवो पडे छे. धन्य छे ते उन्नत जीवात्माओने के जेमणे इन्द्रियो उपर संपूर्ण विजय मेळवी आत्मकल्याणनो विरल मार्ग देखाडी मनुष्यजात उपर परम उपकार कर्यो छे. चरित्रात्मक सारराजगृही नामनी नगरी हती. त्यां श्रेणिक नामनो राजा हतो. एक समये मंडितकुक्षीवनमा फरतां एक अकिंचन छतां पण दिव्य व्यक्ति रष्टिगोचर थइ तेनी आकृति परथी राजाना मनमा अनेक तर्कवितर्क थया. निराकरण अर्थे राजा ते त्यागी पुरुष पासे विनीत भावे जाय छे, अने त्यागधारण करवानु कारण पूछे छे. उत्तरमा पोतानी वीतक कथा कही, "अनाथ" मटी "सनाय" थवा माटेज त्यागवृत्ति ग्रहण कर्यानु जणावी मुनिपुंगव श्रीअनाथिनिग्रंथ नृपवरने "अनाथ" यथार्थ स्वरूप समझावे छे, अने त्यागी तेमज रागीना दृष्टिबिन्दु विषे रहेलु महान् अन्तर-सामसामी दिशाओ जेटलु-उपदेश आपी तेनी समक्ष खडुकरे छे. जेने माता, पिता, सुत, भगिनी, दारा, धन, धाम विगेरे ऐहिक सुख सगवडनां साधनो होय तेने चरित्रम् Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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