Book Title: Anathimuni Charitram
Author(s): Nagchandrajitswami
Publisher: Virchand Lalchand Shah

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Page 7
________________ अनाथिमुनि ॐ प्रासंगिक-वक्तव्य गमे तेटली आपणी मानीए तो पण काया अने माया कोइनी थइ नथी. छतां मनुष्यो तेनी वधारेमा बधारे संभाळ ले छे, ज्यारे वस्तुतः तेना तरफ ओछामां ओडुलक्ष आपQ जोइए, जगतूनी जंजाळनां ते बन्ने मूळ कारण छे. तेनु मूल्य आंकवामां जेटली उणप रहे ते प्रमाणमां देहधारीने भ्रम रूपी भूतनो वळगाड वळगे छे. अर्थात् सत् अने असत् वस्तुनो विधेक गुमावी चोराशीना चक्करमा तेने गोथां मारवां पड़े छे. मानवजन्म अति दुर्लभ छे. संसार सागर तरवा माटेनी ते अपूर्व अने एक मात्र नौका छे. . सत्कर्म नो उदय होय तोज आ अमूल्य प्राप्ति थाय छे. आवो पूर्वकृत पुण्यथी मळेलो भव वेडफी नांववानु बुद्धिहीन सिवाय बीजा कोने पालवी शके ? आवो उत्तम भव सुधारवा माटे ज्ञानपूर्वक सत्संग, साधुजनसेवा, आचार अने विचारनी ऐक्यता अने परोपकार परायण जीवन खास आवश्यक छे. संसारना मिथ्या संबंधो तरफ अनासक्तिभाव केळवाय तोज आत्मानु कल्याण थइ शके अने मनुष्यभव सफळ थयो गणाय. उराम पुरुषोना जीवनचरित्रो उपदेशपूर्ण होइ मनुष्यने मार्गदर्शक थइ पडे छे. तेओ पोतानां अलौकिक जीवन द्वारा आ विचित्र संसारनी असारताने स्पष्ट रीते जाहेर करे छे, अने मनुष्यने सन्मार्ग तरफ प्रेरे छे. ग्राहकशक्तिना प्रमाणमा तेमने पगले पगले चलाय तो तेथी सुख अने शान्तिनो मधुर आस्वाद अनुभवाय. जगत्ना विषमय विषयी पदार्थो अनर्थना उत्पादक छे. जीवनचरित्रो द्वारा प्राप्त थतो सदुपदेश आवा चरित्रम् Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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