Book Title: Alok Pragna ka
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ मानते हैं महाप्रज्ञ बुद्धि को अजित संचित कोष रिक्त होने पर अन्त में बचता केवल अन्तस्तोष इसीलिए स्वकथ्य प्रज्ञा जागरण ही है नितान्त निर्दोष वही है अक्षय शाश्वत कोष योगक्षेम वर्ष उसी की निष्पत्ति अनुपम सफल प्रयोग प्रस्फुटन हुआ प्रज्ञासूत्रों का मिला नया अवबोध प्रस्तुति है प्रज्ञासूत्रों की सानुवाद सुबोध बिखरे प्रज्ञा का उद्योत बने निमित्त Jain Education International हो जीवन में उपयोग प्रज्ञा जागरण में प्रज्ञा का आलोक मुनि राजेन्द्रकुमार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 80