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मानते हैं
महाप्रज्ञ बुद्धि को
अजित संचित कोष
रिक्त होने पर अन्त में बचता
केवल अन्तस्तोष
इसीलिए
स्वकथ्य
प्रज्ञा जागरण ही है नितान्त निर्दोष
वही है
अक्षय शाश्वत कोष
योगक्षेम वर्ष
उसी की निष्पत्ति
अनुपम सफल प्रयोग
प्रस्फुटन हुआ
प्रज्ञासूत्रों का मिला नया अवबोध
प्रस्तुति है प्रज्ञासूत्रों की सानुवाद सुबोध बिखरे
प्रज्ञा का उद्योत
बने निमित्त
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हो जीवन में उपयोग
प्रज्ञा जागरण में प्रज्ञा का आलोक
मुनि राजेन्द्रकुमार
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