Book Title: Agam Suttani Satikam Part 10 Pragnapana
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 227
________________ प्रज्ञापनाउपाङ्गसूत्रं- १- ६/-/५/३३८ थणियकुमारेहिंतो उववज्रंति ?, गोयमा ! असुरकुमारदेवेहिंतोवि उववज्ज्रंति जाव थणियकुमारदेवेहिंतोवि उववज्रंति, जइ वाणमंतरदेवेहिंतो उववज्ज्रंति किं पिसाएहिंतो जाव गंधव्वेहिंतो उववज्रंति गोयमा ! पिसाएहिंतोवि जाव गंधव्वेहिंतोवि उववज्जंति, जइ जोइसियदेवेहिंतो उववज्जंति किं चंदविमाणेहिंतो उववज्रंति जाव ताराविमाणेहिंतो उववज्जंति ?, गोयमा ! चंदविमाणजोइसियदेवेहिंतोवि जाव ताराविमाणजोइसियदेवेहिंतोवि उववज्रंति, २२४ जइ वेमाणियदेवेहिंतो उववज्रंति किं कप्पोवगवेमाणियदेवेहिंतो उववज्रंति कप्पातीतवेमाणियदेवेहिंतो उववज्रंति ?, गोयमा ! कप्पोवगवेमाणियदेवेहिंतो उववज्रंति नो कप्पातीतवेमाणियदेवेहिंतो उववज्ज्रंति, जइ कप्पोवगवेमाणियदेवेहिंति उववज्रंति किं सोहम्मेहिंतो जाव अच्चुएहिंतो उववज्जंति ?, गोयमा ! सोहम्मीसाणेहिंतो उववज्रंति नो सणकुमारजाव अएहिंतो उववज्रंति एवं आउकाइयावि, एवं तेउवाउकाइयावि, नवरं देववज्जेहिंतो उववज्जंति, वणस्सइकाइया जहा पुढविकाइया ॥ सू. (३३९) बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया एते जहा तेउवाऊ देववज्जेहिंतो भाणियव्वा । मू. (३४०) पंचिंदियतिरिक्खजोणियाण णं भंते! कओहिंतो उववज्रंति ?, किं नेरइएहिंतो उ० जाव किं देवेहिंतो उववज्ज्रंति ?, गोयमा ! नेरइएहिंतोवितिरिक्खजोणिएहिंतोवि मणुस्सेहिंतोवि देवेहिंतोवि उववज्जंति, जइ नेरइएहिंतो उववज्जंति किं रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो जाव अहेसत्तमापुढविनेर- इएहिंतो उववज्ज्रंति ?, गोयमा ! रणयप्पभापुढविनेरइएहिंतोवि उववज्रंति जाव असत्तमापुढ विनेरइएहिंतोवि उववज्रंति, जइतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं एगिंदिएहिंतो उववज्जंति जाव पंचिंदिएहिंतो उववज्जति ?, गोयमा ! एगिंदिएहिंतोवि उववज्रंति जाव पंचिंदिएहिंतोवि उववज्रंति, जइ एगिदिएहिंतो उववज्रंति किं पुढविकाइएहिंतो उववज्ज्रंति एवं जहा पुढविकाइयाणं उववाओ भणिओ तहेव एएसिंपि भाणियव्वो नवरं देवेहिंतो जाव सहस्सारकप्पोवगवेमाणियदेवेहिंतोवि उववज्जंति नो आणयकप्पोवगवेमाणियदेवेहिंतो जाव अच्चुएहिंतोवि उववज्रंति मू. (३४१) मणुस्सा णं भंते! कओहिंतो उववज्रंति किं नेरइएहिंतो उववअंति जाव देवेहिंतो उववज्रंति ?, गोयमा ! नेरइएहिंतोवि उववज्रंति जाव देवेहिंतोवि उववज्रंति, जइ नेरइएहिंतो उववज्रंति किं रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो उववज्रंति किं सक्करप्पभापुढविनेरइएहिंतो उववज्रंति किं वालुयप्पभापुढविनेरइएहिंतो पंकप्पभा ० हिंतो धूमप्पभा० हिंतो तमप्पभा० हिंतो अहेसत्तमापुढविनेरइएहिंतो उववज्रंति ?, गोयमा ! रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतोवि जाव तमापुढविनेरइएहिंतोवि उववज्रंति, नो अहेसत्तमापुढविनेरइएहिंतो उववज्रंति, जइतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्रंति एवं जेहिंतो पंचिंदियतिरक्खजोणियाणं उववाओ भणिओ तेहिंतो मणुस्साणवि निरवसेसो भाणियव्वो, नवरं अहेसत्तमापुढविनेरइएहिंतो तेउवाउकाइएहिंतो न उववज्जंति, सव्वदेवेहिंतो य उववाओ कायवो जाव कप्पातीतवेमाणियसव्वट्टसिद्धदेवेहिंतोवि चवज्जावेयव्वा । मू. (३४२) वाणमंतरदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्रंति किं नेरइएहिंतो तिरिक्खजोणि० मणुस्स० देवेहिंतो उववज्रंति ?, गोयमा ! जेहिंतो असुर कपारा तेहिंतो भाणियव्वा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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