Book Title: Agam Sutra Satik 18 Jamboodwippragnapati UpangSutra 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 428
________________ वक्षस्कारः-६ ४२५ जंबुद्दीवेणं भंते! दीवे केवइयाओ महानईओवासहरपवहाओ केवइआओ महानईओ कुंडप्पवहाओ पन्नत्ता ?, गोयमा ! जंबुद्दीवे २ चोद्दस महानईओ वासहरपव्वहाओ छावत्तरिं महानईओकुंडप्पवहाओ, एवामेव सपुव्वावरेणंजंबुद्दीवेदीवे नउर्तिमहानईओ भवंतीतिभक्खायं! __ जंबुद्दीवे २ भरहेरवएसु वासेसु कइ महानइओ पं०?, गोअमा! चत्तारि महानईओ पन्नत्ताओ, तं०-- गंगासिंधू रत्ता रत्तवई, तत्थ णं एगमेगा महानई चउध्सहिं सलिलासहस्सेहिं समग्गापुरस्थिमपञ्चत्यिमेणं लवणसमुहसमप्पेइ, एवामेव सपुवावरेणंजबुद्दीवेदीवेभरहएरवएसु वासेसु छप्पन्नं सलिलासहस्सा भवंतीतिमक्खायंति, जंबुद्दीवेणंभंते ! हेमवयहेरन्नवएसुवासेसु कति महानईओपन्नताओ?, गो०! चत्तारि महानईओ पन्नत्ताओ, तंजहा-रोहिता रोहिअंसा सुवण्णकूला रुष्पकूला, तत्थणंएगमेगामहानईअट्ठावीसाए अट्ठावीसाए सलिलासहस्सेहिं समग्गा पुरस्थिमपञ्चस्थिमेणं लवणसमुई समप्पेइ, एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे २ हेमव- यहेरन्नवएसु वासेसु बारसुत्तरे सलिलासयसहस्से भवंतीतिमक्खायं इति। जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे हरिवासरम्मगवासेसु कइ महानईओ पन्नत्ताओ?, गोयमा ! चत्तारि महानईओपन्नत्ताओ, तंजहा-हरीहरिकंता नरकंतानारिकता, तत्थणंएगमेगा महानई छप्पन्नाए २ सलिलासहस्सेहिंसमग्गा पुरस्थिमपञ्चस्थिमेणंलवणसमुहसमप्पेइ, एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे २ हरिबासरम्मगवासेसु दो चउवीसा सलिलासयसहस्सा भवंतीतिमक्खायं, जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे महाविदेहे वासे कइ महानईओ पन्नत्ताओ?, गोयमा! दो महानईओ पन्नताओ, तंजहा-सीआय सीओआय, तत्यणं एगमेगा महानई पंचहिं २ सलिलासयसहस्सेहिं बत्तीसाए असलिसहस्सेहिं समग्गापुरस्थिमपञ्चस्थिमेणं लवणसमुह समप्पेइ, एवामेव सपुब्बावरेणंजंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे दस सलिलासयसहस्साचउसढिंचसलिलामपञ्चस्थिमेणं लवणसमुई समप्पेइ, एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे दस सलिलासयसहस्सा चउसद्विं च सलिलासहस्सा भवंतीतिमक्खायं। जंबु० मंदरस्सपव्वयस्सदक्खिणेणं केवइया सलिलासयसहस्सा पुरथिमपञ्चत्थिमामिमुहा लवणसमुहसमपेति?,गो०! एगेछन्नउएसलिलासयसहस्से पुरस्थिमपञ्चत्थिमाभिमुहे लवणसमुदं समतित्ति, जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं केवइआ सलिलासयसहस्सा पुरथिमपञ्चस्थिमामिमुहा लवणसमुई समप्पेंति ?, गो० ! एगे छन्नउए सलिलासयसहस्से पुरथिमपञ्चत्थिमाभिमुहे जाव समप्पेइ। ___जंबुद्दीवेणं भंते! दीवे केवइआ सलिलासयसहस्सा पुरत्थाभिमुहा लवणसमुह समप्येति गो० ! सत्त सलिलासयसहस्सा अट्ठावीसंच सहस्सा जाव समप्पेंति, जंबुद्दीवेणंभंते ! दीवे केवइआ सलिलासयसहस्सा पञ्चस्थिमाभिमुहा लवणसमुई समति?, गोअमा! सत्त सलिलासयसहस्साअट्ठावीसंच सहस्साजावसमति, एवामेव सपुवावरेणंजंबुद्दीवेदीवेचोद्दस सलिलासयसहस्सा छप्पन्नं च सहस्सा भवंतीतिमक्खायं इति । करणं चात्र-'विक्खंभपायगुणिओ अ परिरओ तस्स गणिअपयं' इति वचनात् जंबूद्वीपपरिधिस्त्रलक्षषोडशसहनद्विशतसप्तविंशतियोज-नादिको जंबूद्वीपविष्कम्भस्य लक्षरूपस्य पादेन-चतुर्थांशेन पञ्चविंशतिसहस्ररूपेण गुणितो जंबूद्वीपगणितपदमिति, तथाहि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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