Book Title: Agam Sutra Satik 18 Jamboodwippragnapati UpangSutra 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 550
________________ 13) - - ८२१ क्रम | आगमसूत्रनाम वृत्ति-कर्ता • वृत्ति श्लोक प्रमाण श्लोकप्रमाण ३२. | देवेन्द्रस्तव ३७५ | आनन्दसागरसूरि (संस्कृत छाया) | ३७५ ३३. मरणसमाधि * ८३७ | आनन्दसागरसूरि (संस्कृत छाया) ८३७ ३४. | निशीथ |जिनदासगणि (चूर्णिी २८००० सङ्घदासगणि (भाष्य) ७५०० ३५. | वृहत्कल्प ४७३ मलयगिरि+क्षेमकीर्ति ४२६०० सङ्घदासगणि (भाष्य) ७६०० |३६. व्यवहार ३७३ मलयगिरि ३४००० सङ्घदासगणि (भाष्य) ६४०० ३७. | दशाश्रुतस्कन्ध ८९६ - ? - (चूर्णि) २२२५ ३८. जीतकल्प ★ १३० सिद्धसेनगणि (चूर्णि) १००० ३९. | महानिशीथ ४५४८ ४०. | आवश्यक १३० हरिभद्रसूरि २२००० ४१. | ओघनियुक्ति नि.१३५५ द्रोणाचार्य (?)७५०० - पिण्डनियुक्ति में नि. ८३५ मलयगिरिसूरि ७००० दशवैकालिक ८३५ | हरिभद्रसूरि ४३. | उत्तराध्ययन २००० शांतिसूरि १६००० ४४. नन्दी ७०० मलयगिरिसूरि ७७३२ | ४५. | अनुयोगद्वार | २००० मलधारीहेमचन्द्रसूरि ५९०० नोंध:(१) 60 ४५ मामसूत्रोमा वर्तमान अणे पडेल १ थी ११ अंगसूत्रो, १२ थी २३ उपांगसूत्रो, २४थी33 प्रकीर्णकसूत्रो ३४थी 3८ छेदसूत्रो, ४० थी ४3 मूळसूत्रो, ४४-४५ चूलिकासूत्रोन नामेहास प्रसिद्ध छे. (૨) ઉક્ત શ્લોક સંખ્યા અને ઉપલબ્ધ માહિતી અને પૃષ્ઠ સંખ્યા આધારે નોંધેલ છે. જો કે તે સંખ્યા માટે મતાંતર તો જોવા મળે જ છે. જેમકે આચાર સૂત્રમાં ૨૫૦૦, ૨૫૫૪, ૨પરપ એવા ત્રણ શ્લોક પ્રમાણ જાણવા મળેલ છે. આવો મત-ભેદ અન્ય સૂત્રોમાં પણ છે. (3) 69 वृत्ति- नोंछे ते म ३८. संपाइन भुनी छ. ते सिवायना ५९ __ वृत्ति-चूर्णि साहित्य मुद्रित समुद्रित अवस्थामा ५८५ ४. (४) गच्छाचार भने मरणसमाधि नविse चंदावेज्झय भने वीरस्तव प्रकीर्णक मावे छ. सभे “आगमसुत्ताणि" मां भूग ३ अने भागमही५"मां मशः ગુજરાતી અનુવાદ રૂપે આપેલ છે. તેમજ ગીતા, જેના વિકલ્પ રૂપે છે એ ४२. ७००० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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