Book Title: Agam Sutra Satik 18 Jamboodwippragnapati UpangSutra 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text ________________
वक्षस्कारः -७
षण्मासः - प्रागुक्तयुक्तया अयनविशेषो ज्ञातव्यः, एतत् द्वितीयस्य षण्मासस्य पर्यवसानं त्र्यशीत्यधिकशततमाहोरात्रत्वात्, एष आदित्यः संवत्सरः -- आदित्यचारोपलक्षितः संवत्सर इति, इत्यनेन नक्षत्रादिसंवत्सरव्युदासः, एतच्चादित्यस्य संवत्सरस्य पर्यवसानं चरमानयचरमदिवसत्वात् इति समाप्तं मुहूर्त्तगतिद्वारम्, तत्सम्बद्धाच्च ष्टिपथवक्तव्यताऽपि ।
४४७
अथाष्टमं दिनरात्रिवृद्धिहानिद्वारं निरूप्यते
मू. (२५९) जया णं भंते ! सूरिए सव्वब्धंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं केमहालए दिवसे केमहालिया राई भवइ ?, गोअमा! तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ जहन्निआ दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अब्भंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ।
जया णं भंते! सरिए अब्भंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं केमहालए दिवसे हेमहालिया राई भवइ ?, गो० ! तया णं अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहिं ऊणे दुवालसमुहुत्ता राई भवइ दोहि अ एगट्टिभागमुहुत्तेहिं अहिअत्ति, से निक्खममाणे सूरिए दोघंसि अहोरत्तंसि जाव चारं चरइ तया णं केमहालए दिवसे केमहालिया राई भवइ ?, गोयमा तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहिं ऊणे दुवालसमुहुत्ता राई भवइ चउहिं एगसट्टिभागमुहुत्तेहिं अहिंसत्ति, एवं खलु एएणं उवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयाणंतराओ मंडलाओ तयानंतरं मंडलं संकममाणे दो दो एगट्टिभागमुहुत्तेहिं मंडले दिवसखित्तस्स निव्कुद्धेमाणे २ यणिखित्तस्स अमिवद्धेमाणे २ सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइत्ति ।
जया णं सूरिए सव्वबंभंतराओ मंडलाओ सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सव्वमंतरमंडलं पणिहाय एगेणं तेसीएणं राइंदिअसएणं तिन्नि छावठ्ठे एगसट्टिभागमुहुत्तसए दिवसखेत्तस्स निव्बुद्धेत्ता रयणिखेत्तस्स अभिवुद्धेत्ता चारं चरइत्ति ।
जया णं भंते! सूरिए सव्वाबाहिरं मंडलं उबसंकमित्ता चारं चरइ तया णं केमहालए दिवसे केमहालिया राई भवइ ?, गोअमा ! तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिआ अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइत्ति, एस णं पढमे छम्मासे एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे । से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छष्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, जया णं भंते! सूरिए बाहिरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया
महालए दिवसे भवइ हेमहालिया राई भवइ ?, गो० ! अड्डारसमुहुत्ता राई भवइ दोहिं एगसट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगसट्टिभागमुहुत्तेहिं अहिए, से पविसमाणे सूरिए दोव्वंसि अहोरत्तंसि बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ।
जया णं भंते! सूरिए बाहिरतचं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं केमहालए दिवसे भवइ हेमहालिया राई भवइ ?, गो० ! तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ चउहिं एगसट्टिभागमुहुत्तेहिं ऊणा दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगसट्टिभागमुहुत्तेहिं अहिए इति ।
एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सूरिए तयानंतराओ मंडलाओ तयानंतरं मंडल संकममाणे संकममाणे दो दो एगसट्टिभागमुहुत्तेहिं एगमेगे मंडले रवणिखेत्तस्स निबुद्धेमाणे २
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564