Book Title: Agam Sutra Satik 14 Jivajivabhigam UpangSutra 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
________________
प्रतिपत्तिः-३, दीव०
३३९
जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पुरथिमेणं लवणं समुहं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोथूभे नामं आवासपव्यते प० सत्तरसएकवीसाइंजोयणसताई उलंउच्चत्तेणं चत्तारितीसेजोयणसतेकोसंच उब्बेधेणंमूले दसबावीसेजोयणसते आयामविक्खंभेणं मज्झे सत्ततेवीसे जोयमसते उवरि चत्तारिचउवीसे जोयणसए। ___-आयामविक्खंभेणं मूले तिन्नि जोयणसहस्साई दोन्नि य बत्तीसुत्तरे जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणंमज्झेदो जोयणसहस्साइंदोन्नियछलसीतेजोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवणं उवरि एग जोयणसहस्सं तिन्नि य ईयाले जोयणसते किंचिविसेसूणे परिक्खेवणं मूले वित्थिन्नेमज्झे संखित्तेउप्पिंतणुए गोपुच्छसंठाणसंठिए सब्बकणगामए अच्छे जावपडिलवे
सेणं एगाए पउमवरवेदियाए एगेण य वनसंडेणं सब्बतो समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ।।गोथूभस्सणं आवासपव्वतस्स उवरि बहुसमरमणिजे भूमिभागे प० जाव आसयंति
तस्सणंबहुसमरमणिजस्सभूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाएएत्यणंएगे महं पासायवडेंसए बावट्ठजोयणद्धं च उडं उच्चत्तेणंतंचेव पमाणं अद्धं आयाम विक्खंभेणं वण्णओ जाव सीहासणं सपरिवारं । सेकेणटेणंभंते! एवंबुच्चइ गोधूभे आवासपचए२?, गोयमा! गोथूभेणं आवासपव्वते तत्थर देसे तहिं २ बहुओ खुड्डाखुड्डियाओजावगो)भवण्णाइंबहूइंउप्पलाइंतहेव जाव गोथूभे तत्य देवे महिद्दीए जाव पलिओवमहितीए परिवसति, सेणं तत्थ चउण्हं सामानियसाहस्सीणं जाव गो)भयस्स आवासपव्वतस्स गोथूभाए रायहाणीए जाव विहरति, से तेणटेणं जाव निच्चे
रायहाणिपुच्छागोयमा! गोथूभस्स आवासपव्वतस्स पुरस्थिमेणंतिरियमसंखेजे दीवसमुद्दे वीतिवइत्ता अन्नंमि लवणसमुद्दे तं चैव पमाणं तहेव सव्वं ।
कहि णं भंते ! सिवगस्स वेलंधरणागरायस्स दओभासणामे आवास पव्वते पन्नते?, गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दक्खिणेणं लवणसमुदं बायालीसंजोयणसहस्साई ओगाहित्ता एस्थ णं सिवगस्स वेलंधरणागरायस्स दोभासे नामं आवासपव्वते पन्नते।
तंचेवपमाणंजंगोथुभस्स, नवरि सब्बअंकामए अच्छेजाव पडिलवेजाव अट्ठो भाणियब्बो, गोयमा! दोभासेणं आवासपचते लवणसमुद्दे अट्ठजोयणियखेत्तेदगंसव्यतो समंताओभासेति उज्जोवेति तवति पभासेति सिवए इत्य देवे महिटीए जाव रायहाणी से दक्खिणेणं सिविगा दओभासस्स सेसंतंचेव।
कहिणंभंते! संखस्स वेलंधरणागरायस्स संखे नामं आवासपब्बते प० गो० जंबुद्दीवेणं दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पञ्चस्थिमेणं बायालीसंजोयणसहस्साई एत्य णं संखस्स० वेलंधर० संखे नामं आवासपब्बते तं चेव पमाणं नवरं सव्वरयणामए अच्छा।
सेणं एगाए पउमवरवेदिवाए एगेण य वनसंडेणं जाव अट्ठो बहूओ खुड्डाखुड्डिआओ जवा बहूइं उप्पलाइंसंखाभाइं संखवण्णाइंसंखवण्णाभाइंसंखे एत्य देवे महिडीएजाव रायहाणीए पञ्चत्थिमेणं संखस्स आवासपब्वयस्स संखा नाम रायहाणी तं चेव पमाणं ।।।
____ कहिणं भंते ! मनोसिलकस्स वेलंधरणागरायस्स उदगसीमाए नामं आवासपब्बते प०' गो० जंबुद्दीवे २ मंदरस्स उत्तरेणं लवणसमुदं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं मनोसिलगस्स वेलंधरणागरायस्स उदगसीमाए नामं आवासपचे प० तं चेव पमाणं नवरि सब्बफलिहामए अच्छेजाव अट्ठो, गो० दगसीमंतेणं आवासपब्बते सीतासीतोदगाणं महानदीणं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532