Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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॥ श्री ओघनियुक्ति सूत्रं ॥
णमो अरहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं 'एसो पंचनमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं ॥१॥ (दुविहोवक्कमकालो सामायारी अहाउयंचेव । सामायारी तिविहा आहे दसहा |पयंविभागे ॥ १ ॥ नवमयपच्चक्खाणाभिहाणपुव्वस्स तइयवत्थूओ । वीसइमपाहुडाओ तओ इहानीणिया जड़या ॥ २ ॥ सो उ उवक्कमकालो तयत्थनिव्विग्धसिक्खणत्थं च। आईय कयं चिय पुणो मंगलमारंभये तं च ॥ ३ ॥ प्र०) अरहंते वंदित्ता चउदसपुवी तहेव दसपुव्वी । एक्कारसंगसुतत्थधारए सव्वसाहू य॥१॥ आहेण उ निज्जुत्तिं वुच्छं चरणकरणाणुओगाओ। अम्पक्खरं महत्थं अणुग्गहत्थं सुविहियाणं ॥ २ ॥ जुम्मं ओहे पिंडण समासे संखेवे चेव होंति एगट्ठा। निज्जुत्तत्ति य अत्था जं बद्धा तेण निज्जुत्ती ॥ १ માખી
वय समणधम्म संजम वेयावच्चं च बंभगुत्तीओ। नाणाइतियं तव कोहनिग्गहाई चरणमेयं ॥ २ ॥ पिंडविसोही समिई भावण पडिमा य इंदियनिरोहो । पडिलेहण गुत्तीओ अभिग्गहा चेव करणं तु॥३ ॥ चोदगवयणं छट्ठी संबंधे कीस न हवइ विभत्ती ? | ॥ श्री ओघनियुक्तिसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित
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