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हत्थुत्तराहिं गन्मायो गन्मं साहरिए २ हत्थुत्तराहिं जाए ३ हत्थु राहिं मुंडे भविता श्रगारा अणगारिथं पव्वइए ४ पडिपुन्न केवलवर नाणं दंसणे समुपपन्ने ५ साइया परिनिब्बुए भयव ६ ।। २ ।।
इस सूत्र में श्रीमन् महावीर प्रभु को उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में पांच बातें हुई हैं वे बताई है.
माता के उदर (पेट) में आना वो च्यवन, एक स्थान से दूसरे स्थान में गर्भ ले जाना वो गर्भसाहरण, जन्म, दीक्षा, ( साधूपण लेना ) केवल ज्ञान और मोन्. इन है बार्तो में प्रथम की पांच उत्तरा फाल्गुनी नचत्र में और छठ्ठी मोक्ष स्वाति नक्षत्र में हुआ.
कल्याणकः - तीर्थकरों का माता के गर्भ में थाना, जन्म लेना, दीक्षा लेना, केवल ज्ञान प्राप्त करना, और मोक्ष में जाना भव्य आत्माओं को कल्याणकारी होने से ये प्रत्येक तीर्थकर के ५ कल्याणक माने जाते हैं. अन्तिम तीर्थंकर श्री महावीर प्रभु को गर्भपहार अधिक हुवा उसे भी कितने ही आचार्य कल्याएक मानते है और कितने ही नहीं मानने अपेक्षा पूर्वक तत्वज्ञानी गम्य हैं.
* श्रीमन महावीर प्रभु की कल्याणक तिथियें
सूत्र ( ३ )
ते कालेणं तेणं समरणं समये भगवं महावीरे जे से गिम्हाणं उत्थे मासे अट्टमे पक्खे प्रासादसुद्धे तस्सणं यासांडसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं महाविजयपुप्फुत्तरपवरपुंडरीयाश्रो महाविमाणाय वीसंसागरोवमट्ठिड्यायो घाउक्खएणं भवक्खणं ठिक्खणं अतरं चयं चत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढर्भरहे इमीसे ग्रोसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए विइताए १ सुसमाए समाए विताए २ सुसमदुसमाए समाए विताए ३ दुसमसुसमाए समाए बहुवि -