Book Title: Agam 30 Mood 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi Gujarati
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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66 बायरा
" इत्यादि.
भ्मन्वार्थ–जे उ पज्जत्ता बायरा-ये तु पर्याप्ता बादराः के पर्यात व्याहर छे ते पंचहा पकित्तिया ते पञ्चधा प्रकीर्तिताः मे पांय प्रहारना उडेवायेस छे, सुद्धोदए उस्से हरतणु महिया हिमे - शुद्धोरकं उस्सः हरतनुः महिका हिमम् शुद्ध उहू - मेघथी पडेस पाणी उस्स- मोस, रतनु- सवारनी 3 डी पृथवीथी निम्णेस ખડના અગ્રભાગ ઉપર પડેલા જળબિંદુ, મહિકા—અર તથા હિમ આ પ્રમાણે પર્યાપ્ત ખાદર જળ પાંચ પ્રકારનાં છે. ! ૮૬ ૫
" एग विह० " त्याहि ।
मन्वयार्थ - सुहुमा - सूक्ष्मा सूक्ष्म संज्ञ ने भव हे ते एकविहमणाणत्ताएकविधाः अनानात्वाः मे ४ प्रहारना छे. तेनी अंदर लुहा लुद्दा प्रहार नथी. आ सुहुमा - सूक्ष्माः सूक्ष्म व सव्वलोगम्मि- सर्वलोके समस्त बोउभां लरेला छे, तथा बायरा - बायराः माहर ४जलव लोगदेसे -लोकदेशे बोउना એક દેશમાં જોઈ શકાય છે. સત્ર નહી આ સૂક્ષ્મ અને માદરજીવ સંતરૂં पप्प - सन्ततिं प्राप्य प्रवाहनी अपेक्षाथी अणाइया वि य अपज्जवसिया- अनादिकाः अपि च पर्यवसिता अनाहि भने अनंत छे. ठिई एप्प -स्थितिं प्राप्य लवस्थिति रमने डायस्थितिनी भ्अपेक्षाथी साईया सपज्जवसिया - सादिकाः सपर्यवसिताः साहि ाने सांत छे. या ४ज भवानी आउठिई - आयुः स्थितिः ग्मायु स्थिति उक्कोसाउत्कृष्टिका उन्ष्ट वासाणं सत्तेव सहस्साइं वर्षाणां सप्तैव सहस्राणि सात ईन्भर वर्षांनी होय छे तथा जहन्निया - जघन्यका धन्य अंतोमुहुत्तं-अन्तहूर्मुर्त्तम् भतभुतंनी होय छे तथा तं कार्य अमुंचओ आऊणं तं कार्यं अमुञ्च ताम् अपाम् તે જળકાયરૂપ શરીરને ન છેડતાં અર્થાત્ મરી મરીને વારવાર ત્યાં જ જન્મ धारण उरीने से अजय भवानी कायठिई - कायस्थितिः अयस्थिति उक्कोसं अनंतकाल - उत्कृष्टा असंख्यकालम् उत्कृष्ट असंख्यात आज प्रमाणु छे अर्थात् અસંખ્યાત લેાકાકાશ પ્રદેશ પ્રમાખ્યુ ઉત્સર્પિણી અને અવસિપણી કાળરૂપ છે. तथा जहन्निया जघन्यिका धन्य अयस्थिति अंतोमुहुत्तं - अन्तर्मुहूर्त्त अंतर्भुत प्रभाणु छे. सए काए विजढम्मि स्वके काये त्यक्ते पोताना शरीरने छोड्या पछी दूरीथी भेग शरीरने अब उरवाना अंतरं - अन्तरम् मंतर आऊ जीवाणअब् जीवानाम् अयुद्धाय भवना उक्कोसं उत्कृष्टम् उत्कृष्ट ३५मा अनंतकालं
શ્રી ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૪
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