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महायारकहा (महाचारकथा)
३२१ अध्ययन ६ : श्लोक ३६,३८,४६ टि०६०-६४
श्लोक ३६ :
६०. अग्नि-समारम्भ के तुल्य ( तारिसं ख ) :
इसके पूर्ववर्ती श्लोकों में अग्निकाय के समारम्भ का वर्णन किया गया है । यहाँ 'तारिसं' शब्द के द्वारा 'अनिल समारम्भ' की 'अग्नि समारम्भ' से तुलना की गई है।
६१. ( सावज्जबहुलं "):
जिसमें बहुल (प्रचुर) सावध हो वह सावद्य-बहुल होता है । जो अव द्य साहित होता है उसे सावद्य कहते हैं। अवद्य, वैर और पर-ये एकार्थक हैं।
६२. (च ):
अगस्त्यसिंह ने 'चकार' को हेतु के अर्थ में और जिनदास ने पाद-पूर्ति के अर्थ में माना है।
श्लोक ३८ :
६३. उदीरणा ( उईरंति ग ) :
इसका अर्थ है-प्रयत्नपूर्वक उत्पन्न करना-प्रेरित करना ।
श्लोक ४६: ६४. श्लोक ४६ :
४५वें श्लोक तक मूलगुणों (व्रत-षट्क और काय-षट्क) की व्याख्या है। इस श्लोक से उत्तरगुणों की व्याख्या प्रारम्भ होती है। प्रस्तुत अध्ययन में उत्तरगुण छह (अकल्प-वर्जन, गृहि-भाजन-वर्जन, पर्यंक-वर्जन, गृहान्तर-निषद्या-वर्जन, स्नान-वर्जन और विभूषा-वर्जन) बतलाए हैं। वे मूलगुणों के संरक्षण के लिए हैं, जैसे—पाँच महाव्रतों की रक्षा के लिए २५(प्रत्येक की पांच-पाँच) भावनाएँ होती हैं, वैसे ही व्रत और काय-षट्क की रक्षा के लिए ये छह स्थान हैं। जिस प्रकार भीत और किवाडयुक्त गृह के लिए भी प्रदीप और जागरण रक्षा-हेतु होते हैं, वैसे ही पंचमहाव्रतयुक्त साधु के लिये भी ये उत्तरगुण महाव्रतों के अनुपालन के हेतु होते हैं। उनमें पहला उत्तरगुण 'अकल्प' है ।
१-(क) अ० चू० पृ० १५१ : 'तारिसं' अग्गिसमारभसरिसं ।
(ख) हा० टी० प० २०१ : 'तादृशं' जाततेजःसमारंभसदृशम् । २-(क) अ० चू० पृ० १५१ : सावज्ज बहुलं जम्मि तं सावज्जबहुलं ।
(ख) हा० टी० प० २०१ : 'सावद्यबहुलं' पापभूयिष्ठम् । ३-जि० चू० पृ २२५ : सह वज्जेण सावज्ज, वज्जं नाम वज्जति वेरंति वा परंति वा एगट्टा, बहुलं नाम सावज्जदोसाययणं । ४- अ० चू० पृ० १५१ : चकारो हेतौ। ५ जि० चू० पृ० २२५ : चकारः पादपूरणे। ६-जि० चू० पृ० २२६ : कायछक्कं गतं, गया य मूलगुणा, इदाणि उत्तरगुणा, अकप्पादिणि छट्ठाणाणि, ताणि मूलगुणसारक्खय
भूताणि, तं ताव जहा पंचमहन्वयाणं रक्खणनिमित्तं पत्तेयं पंच पंच भावणाओ तह अकप्पादिणि छठ्ठाणाणि वयकायाणं रक्खणत्थं भणियाणि, जहा वा गिहस्स कुड्डकवाडजुत्तस्सवि पदीवजागरमाणादि रक्खणाविसेसा भवन्ति तह पंचमहन्वयजुत्तस्सवि साहुणो तेसिमणुपालणरथं इमे उत्तरगुणा भवन्ति, तत्थ पढमं उत्तरगुणो अकप्पो।
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