Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Sthanakavsi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 13
________________ प्रकाशकीय कला के मुख्यत: तीन स्तर माने गए हैं। पहली कला निम्न कला होती है जो शरीर की भूख मिटाती है। दूसरी कला मध्यम कला होती है जो मन और बुद्धि की भूख शान्त करती है और तीसरी कला उच्च कोटि की होती है जो आत्म-दर्शन कराती है। वास्तव में तीनों कलाओं में से आत्म-दर्शन कराने वाली कला सर्वश्रेष्ठ है। इसे धर्मकला अथवा जीवनकला भी कह सकते हैं। यही धर्म कला मनुष्य को जीवन जीना सिखाती है, जीवन को आनन्दमय बनाती है, कटुता एवं कुरुपता को मधुरता एवं सुन्दरता के वस्त्र पहनाती है तथा आत्मा का शृंगार करती है। इसी क्रम में आत्मा का शोधन करके आत्मदर्शन कराने वाला आप्त पुरुषों द्वारा प्ररूपित एक ऐसा ही आगम है 'श्री निशीथ सूत्र' । बीस उद्देशकों में वर्णित साधु समाचारी पर आधारित प्रस्तुत आगम का छेद सूत्रों में महत्वपूर्ण स्थान है। लगभग बीस वर्ष पूर्व पूज्य गुरुदेव उत्तर भारतीय प्रवर्त्तक भण्डारी श्री पद्मचन्द जी म. सा. ने अपने सुविनीत शिष्य आगम दिवाकर प्रवर्त्तक श्री अमर मुनि जी म. सा. को आगमों के अंग्रेजी अनुवाद के साथ-साथ सचित्र संस्करण प्रकाशित करने की प्रेरणा दी थी जिसे पूज्य गुरुवर ने अपने संयममय जीवन में कठिन परिश्रम करके जैन आगम साहित्य के प्रकाशन को नवीन मूर्त रूप प्रदान करते हुए एक नई विधा का शुभारम्भ किया। आगम प्रकाशन श्रृंखला में 'सचित्र निशीथ सूत्र' पूज्य गुरुवर की 27वीं रचना है। इससे पूर्व जून 2013 में श्री भगवती सूत्र का चतुर्थ भाग आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा चुका है। पूज्य गुरुदेव श्री अमर मुनि जी म. सा. ने आगमों का चित्रों सहित अंग्रेजी अनुवाद कराकर जो श्रमसाध्य श्रुत सेवा का कार्य किया है, इससे उन्होंने अपना नाम जैन श्रुत साहित्य में स्वर्ण अक्षरों में अंकित करा लिया है। वर्तमान में पूज्य गुरुदेव श्री अमर मुनि जी म. सा. के सेवाभावी शिष्य एवं आगम रसिक श्री वरुण मुनि जी म. सा. की निश्रा में आगमों के प्रकाशन का कार्य सुचारू रूप से चल रहा है। हम उनका यह उपकार भूल नहीं सकते। इस संपादन एवं चित्रण में मुख्य सहयोगी श्री संजय सुराणा, श्री दिवाकर प्रकाशन, आगरा का सहयोग भी सदा स्मरण रहेगा। श्रुत प्रकाशन के लिए जिन गुरुभक्तों ने उदार हृदय से अर्थ सहयोग प्रदान किया है, उन सभी के प्रति हम सहृदय से धन्यवाद व्यक्त करते हैं। यह आगम पीयूषवर्षी मेघ की तरह श्रुतप्रेमियों को रस विभोर कर जिनवाणी की ताल पर धर्म नृत्य कराने में तत्पर बनाए। इसी भावना के साथ...! (5) महेन्द्र कुमार जैन अध्यक्ष : पद्म प्रकाशन, दिल्ली

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