Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे उत्तरदक्षिणयो विस्तारवान् ‘इकं जोयणसहस्सं आयामेणं' एकं योजनसहस्रमायामेन एक सहस्रयोजनपर्यन्तमायत इति भावः, 'पंचजोयणसयाई विक्खंभेणं' पञ्च योजनशतानि विष्कम्भेण पञ्चशतयोजनपर्यन्तं विस्तारवान , 'दस जोयणाई उव्ये हेणं' दश योजनानि उद्वेधेनभूगतत्वेन । पुनः स 'अच्छे' अच्छा-आकाशस्फटिकवदति निमलः, 'सण्हे' श्लक्ष्णःचिक्कणः 'रययामयक्रे' रजतमय कूलः-रजतमयं कूलं तटं यस्य स तथा रजतमयतटः, 'जाव' यावत् - यावत्पदेन-'समतीरे वइरामयपासाणे तवणिज्जतले मुरण्णमुम्भरयणामयवालुए वेरुलियमणिफालियपडलपच्चोयडे सुहोयारे मुहुत्तारे णाणामणि तित्थसुबद्ध चाउकोणे अणुपुरसुनायवप्पगंभीरसीयलजले संछन्नपत्तभिसमुणाले बहुउप्पलकुमुयसुभगसोगंधियपुंड. रीय सयवत्तफुल्लकेमरोवचिए छप्पयपरिभुज्जमाणकमले अच्छे बिमलसलिलपुण्णे परिहत्थभमंतमच्छकच्छभं अणेग सउणमिहुणपरिअरिए' इति संग्राह्यम् ।
एतच्छाया-"समतीरः वज्रमयपाषाणः तपनीयतलः सुवर्णशुभ्ररजतमयवालुकः वैडूर्यमणिस्फटिकपटलपच्चोयडः सुखावतारः सुखोत्तारः नानामणितीथसुबद्धः चतुष्कोणः आनुः पूर्व्यसुजातवप्रगम्भीरशीतलजला संउन्नपाविसमृणालः बहूल्पलकुमुदसुभग सौगन्धिकपुण्डपासाईए जाव पडिरूवत्ति) यह 'द्रह पूर्व से पश्चिम तक लम्बा है तथा उत्तर से दक्षिण तक विस्तीर्ण है एक हजार योजन की इसकी लंबाई है तथा पांच सौ योजन का यह चौडा हैं इसकी गहराई १० योजन की है यह आकाश और स्फटिकके जैसा अच्छ--निर्मल है, श्लक्ष्ण-चिकना है इसका तट रजतमय है यहां यावत्पद से-'समतीरे, वामयपासाणे, तवणिज्जतले, सुवण्ण सुकभरयणामयबालुए, वेकलियमणि फालिय पडलपच्चोयडे सुहोयारे सुहुत्तारे, जाणामणितित्थसुबद्ध, चाउकोणे, अणुपुश्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजले, संच्छएणपत्तभिसमुणाले बहु उप्पलकुमुयसुभग सोगंधिय पुंडरीय सयवत्तफुल्लकेसरोवचिए, छप्पय परिभुज्जमाणकमले, अच्छविमलसलिलपुण्णे, परिहत्थभमंतमच्छकच्छभं, अणेग सउणमिहुणपरिअरिए" इस पाठ का संग्रह हुआ कूले जाव पासाइए जाव पडिरूवत्ति' से (५३) पूर्वथा पश्चिम सुधा सांभुछ ઉત્તરથી દક્ષિણ સુધી વિસ્તીર્ણ છે. એક “સહસ્ત્ર જન જેટલી એ કહની લંબાઈ છે. એ આકાશ અને સ્ફટિકના જેવો અછ-નિર્મળ છે, લકણ છે–ચિકકણ છે. આખ તટ २४तमय छे. 24 यातू ५:थी 'समतीरे वइरामयपासाणे, तवणिज्जतले सुवण्ण सुब्भरययामयवालुए, वेरुलियमणिकालिय पडलपच्चोयडे सुहोयारे, सुहुत्तारे, णाणामणितित्थसुबद्धे चाउकोणे, अणुपुव्वसुजायचप्पगंभीरसीयलजले, संच्छण्णपत्तभिसमुणाले, बहु उप्पल कुमुय सुभय सोगंधिय पुंडरीय सयवत्त फुल्लकेसरोवचिए, छप्पयपरिभुज्जमोणकमले, अच्छ विमलसलिलपुण्णे परिहत्थभमंत मच्छकच्छभं अणेग सउण मिहणपरिअरिए' मा मखीत थयो . मा पानी या 241 प्रभा-निम्नता
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